देश को आजाद कराने में मुसलमानों का अहम योगदान : वली रहमानी
- देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी मदरसा से की पढ़ाई - अंग्रेजी हुकूमत से प
- देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी मदरसा से की पढ़ाई
- अंग्रेजी हुकूमत से पहले मदरसा इस्लामिया ही पढ़ने पढ़ाने का था एकमात्र जरिया
- मदरसा की उपयोगिता आज भी है और कल भी रहेगी
जागरण संवाददाता, मुंगेर : जामिया रहमानी खनकाह के जलसा ए दस्तारबंदी में भाग लेने के लिए शनिवार को बिहार झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा देश के अलग अलग हिस्सों से लाखों लोग मुंगेर पहुंचे। कार्यक्रम में शिरकत करने आए लोगों को संबोधित करते हुए इमरात ए शरिया के अमीर हजरत मौलाना वली रहमानी ने कहा कि दीनी मदरसा ना सिर्फ मुसलमानों बल्कि मुल्क के लिए भी कीमती सरमाया है। इन मदरसों ने महलों से लेकर झोपड़ियों तक चिराग रोशन किया है । मदरसों ने मुल्क को संस्कारी इंसान दिए हैं। वतन से मोहब्बत, दीन और इंसान की खिदमत का जज्बा फैलाया है। मुल्क की दाखिली सलामती के तह़फ़्फु•ा, सालेह समाजी कदरों के फरोग और बड़े बड़े उलमा को तैयार करने में उनका बड़ा किरदार है । मुल्क के कारगहे अमल से उन्हें अगर अलग कर दिया जाए, तो मुल्क बहुत पीछे चला जाएगा और सदियों पुरानी परंपरा भी मिट जाएगी। मौलाना मोहम्मद वली रहमानी ने कहा कि जंग ए आ•ादी का पहला बिगुल बजाने से लाल किला पर झंडा लहराने तक की कोई ऐसी घटना नहीं है जिसमें मुल्क के मुसलमान और मदरसा के लोग कंधे से कंधे मिला कर खड़े नहीं रहे हों या हिस्सा नहीं लिया हो। मुल्क की इलमी तारीख भी दीनी मदरसों की जड़ों में पैवस्त है। अंग्रेजी हुकूमत से पहले पढ़ने पढ़ाने का एकमात्र जरिया सिर्फ मदरस इस्लामिया था। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की तालीम मदरसा में हुई थी। पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने खानकाह रहमानी में 31 मई 2003 को कहा था कि मैंने भी मदरसा में तालीम हासिल की है। यह सच्चाई है, जिन्हें कबूल करना चाहिए कि मदरसा की अहमियत और उपयोगिता आज भी है कल भी रहेगी।