मैथिली के दूसरे विद्यापति प्रदीप के निधन पर शोक की लहर
मधुबनी। जगदंब अहि अवलंब हमर हे माई अहां बिनु आस केकर जैसे मिथिलांचल की मिट्टी में समाए कई गीतों के अमर रचनाकार मैथिली पुत्र प्रदीप का शनिवार सुबह लहेरियासराय स्थित आवास पर निधन हो गया।
मधुबनी। 'जगदंब अहि अवलंब हमर, हे माई अहां बिनु आस केकर' जैसे मिथिलांचल की मिट्टी में समाए कई गीतों के अमर रचनाकार मैथिली पुत्र प्रदीप का शनिवार सुबह लहेरियासराय स्थित आवास पर निधन हो गया। निधन की खबर पाते ही अनुमंडल क्षेत्र के साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गई। साहित्यकार डॉ. संजीव शमा ने शोक प्रकट करते हुए कहा कि मिथिला में दूसरे विद्यापति के रूप में प्रसिद्ध मैथिली पुत्र प्रदीप शिक्षक के रूप में नौकरी करते हुए ही मैथिली की सेवा शुरू की थी। भगवती के उपासक को उनकी कालजयी रचना ने मिथिलांचल व बिहार में सदा के लिए अमर कर दिया है। उनकी रचनाओं की चर्चा करते हुए कहा कि इनके प्रसिद्ध रचनाओं में ''लाले लाले अड़हुल के माला बनेलहुं गर्दन लगा लिअ मां, राम हमरे थिकाह थिक हमरे सिया तखन चिता कथू के किया हम करी, तों ने बिसरिहें गे माय तों जं बिसरबें त दुनिया मे पड़तै बौआई'' आदि अमर गीत आज भी मिथिला में शुभ अवसर पर बड़े ही आदर के साथ लोग गाते हैं। वे भगवती के परम उपासक थे। उनकी ही प्रेरणा से उन्होंने अमर गीत की रचना कर सदा के लिए अमर हो गए। उन्हें मिथिलांचल के सर्वोत्कृष्ट सम्मानों में मिथिला रत्न, सुमन साहित्य सम्मान, वैदेह सम्मान, मिथिला रत्न सम्मान, भोगेंद्र झा सम्मान सहित दर्जनों सम्मान से सम्मानित किया गया था । साहित्यकार डॉ. अनिल ठाकुर ने कहा कि प्रारंभिक जीवन में वे बिहार सरकार के प्रारंभिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में सेवा देते हुए वर्ष 1999 में दरभंगा नगर के गौरीशंकर मध्य विद्यालय<ढ्डद्धड्ड>; कोतवाली चौक से सेवानिवृत्त हुए थे। उनके निधन पर गीतकार शंभु सौरभ, कुमार साहब, गायिका कुमकुम झा, डॉ. कन्हैया झा, अनु अंजना, मलयनाथ मंडन, प्रो. सुशील झा, गायक जितेंद्र सन्यासी, महेश शर्मा, राधेश्याम ठाकुर आदि ने शोक व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी है।