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महाअष्टमी पर दर्शन को पूजा पंडालों में भीड़

मधुबनी। रहिका प्रखंड क्षेत्र में महाअष्टमी पर मां दुर्गे की आराधना भक्तों ने की।

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 12:49 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 05:04 AM (IST)
महाअष्टमी पर दर्शन को पूजा पंडालों में भीड़
महाअष्टमी पर दर्शन को पूजा पंडालों में भीड़

मधुबनी। रहिका प्रखंड क्षेत्र में महाअष्टमी पर मां दुर्गे की आराधना भक्तों ने की। महिलाएं परिवार की सुख शांति और संतान की मनोकामना पूरी होने को ले खोंइछ भर सुबह से ही मंदिरों मे पूजा अर्चना को ले पहुंची। सतलखा दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष बिमल झा,सचिव आनंद जी झा ने बताया कि जिस तरह से भव्य मंदिर निर्माण मे ग्रामीणों का अपार सहयोग रहा वह प्रशंसनीय है। उन्होंने कुछ और काम होने की चर्चा करते हुए कहा कि ग्रामीणों की सहयोग की आवश्यकता है और आशा है कि यह भी काम पूरा होगा। वहीं समिति के सदस्यों द्वारा लगातार प्रशासन की ओर से दिए गए निर्देश का पालन हो इसके लिए तत्पर दिख रहे हैं। वहीं प्रखंड के अन्य भागों मे भक्तमय माहौल बना हुआ है। कोरोनामहामारी को देखते हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हो रहा है।

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यमशम में प्राचीन काल से ही है पूजा की परंपरा

पंडौल: मां दुर्गा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कर शारदीय नवरात्रा मनाने की परम्परा यूं तो चिरकाल से चला आ रहा है द्य इसमें प्रखंड में यमशम व नवटोल में हो रही दूर्गा पूजा सबसे पुरानी है। जिसमें यमशम की दुर्गा हजारों वर्ष पुरानी है जो संभवत: समूचे बिहार में पुरानी हो जिसकी जानकारी पंजी व्यवस्था से मिलती है द्य वहीं नवटोल की मां दुर्गा पूजा 170 वें वर्ष की हो चुकी हैं। अवकाश प्राप्त प्रो. डा. विश्वेश्वर मिश्र पुरानी ग्रन्थों एवं पुस्तकों की चर्चा करते हुए कहते हैं की वर्ष 1849 में दरभंगा महाराज रुद्र सिंह शारदीय नवरात्रा में बंगाल गए थे। वहां हो रहे दुर्गा पूजा को देख वे इसके प्रति आकर्षित हुए। अपने यहां दूर्गा पूजा प्रारंभ करने के लिए वहां से वे पूजा की बंगाली पद्धति लाए द्य परन्तु उनके राज पंडितों ने उन्हें स्वयं पूजा करने से मना किया द्य तब यह निर्णय लिया गया की किसी रिश्तेदार के यहां यह करवाई जाए द्य तब माधव सिंह के दौहित्र व महेश्वर सिंह के तत्कालीन सदर दिवान नवटोल निवासी कौशिकीनाथ उर्फ मनमोहन झा को मौजे से प्राप्त राजस्व देकर बंगाल पद्धति से दुर्गा पूजा करने का निर्देश दिया गया द्य वर्ष 1851 में पहली बार नवटोल में बंगाली विधि से मां दुर्गा की पूजा अर्चना प्रारंभ की गई द्य तब से अब तक अनवरत यह पूजा हो रही है द्य उस समय दरभंगा महाराज के द्वारा दुर्गा पूजा के लिए पर्याप्त सम्पत्ति दी गई थी द्य जिसकी वार्षिक आय से प्रतिवर्ष पूजा अर्चना होती रही साथ ही प्रति वर्ष दरभंगा महाराज की ओर से पूजा के लिए तय राशि आती रही है द्य दूर्गा पूजा के लिए दी गई सम्पत्ति की सनद मनमोहन झा के वंशजों के पास ही थी द्य परन्तु बाद में दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने यह सनद दुर्गानाथ झा से वापस ले लिया द्य

यहां गाए जाते नारदीय भजन

नवटोल की मां दुर्गा की मुख्य विशेषता उनकी आरती व पूजा विधि है द्य आरती के समय वहां सभी जाती वर्ग के लोग मिलकर नारदीय भजन गाते हैं जो प्राय: कहीं और नहीं गाए जा रहे हैं द्य नवटोल में अब तक मनमोहन झा,गंगानाथ झा, रिद्धीनाथ झा, केशवनाथ झा,दुर्गानाथ झा के संरक्षण में दुर्गा पूजा हो चुकी है। वर्तमान में पिछले कई वर्षों से प्रो.अमरनाथ झा के संरक्षण में दुर्गा पूजा हो रही है द्य नवटोल की यह दुर्गा अपने भक्तों की हर उस मनोकामना को पूरा करती हैं जो भक्त सच्चे मन से मांग ले द्य भक्तों की अपार श्रद्धा है मां दुर्गा के प्रति द्य विजया दशमी के दिन प्रारंभ से ही मां दुर्गा अपने चाल पर भक्तों के कंधों के सहारे लगभग छह किलोमीटर की दूरी तय कर सरिसब - पाही होते हुए पैटघाट स्थित कमला धार में विसर्जन के लिए जाती हैं। मां दुर्गा की विसर्जन यात्रा में हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं द्य वहीं सैकड़ो श्रद्धालु लाठी भांजते हुए शामिल हो पुण्य का भागीदार बनते हैं। लेकिन इसबार सरकारी दिशा निर्देशानुसार ही विसर्जन किया जाएगा।


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