निजी स्कूलों की आधारभूत संरचना पर उठते रहे सवाल
प्राइवेट स्कूलों मे बच्चों के बेहतर शिक्षा की उम्मीद लगाए परिजनों को निराशा ही हाथ लगती है।
मधुबनी। प्राइवेट स्कूलों मे बच्चों के बेहतर शिक्षा की उम्मीद लगाए परिजनों को निराशा ही हाथ लगती है। अभिभावकों को स्कूल में शिक्षण सहित अन्य व्यवस्था का आकलन के बाद ही बच्चों को स्कूलों को सौंपना चाहिए। ताकि स्कूल संचालन की व्यवस्था को समझ सके। प्राइवेट स्कूलों में संसाधन की कमी होने के बाद भी स्कूल संचालकों द्वारा प्रचार-प्रसार के माध्यम से अभिभावकों से मोटी रकम की उगाही की जाती हैं। प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार नहीं प्राइवेट स्कूलों की संख्या तो बढ़ती चली गई। वहीं स्कूलों में शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार नही देखी जा रही है। तंग कमरों में क्षमता से अधिक बच्चों को बिठाया जाता है। शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) का जिले के प्राइवेट स्कूलों में पालन नही होने से आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। इसे लागू कराने के प्रति प्राइवेट स्कूल के संचालक व शिक्षा विभाग उदासीनता रहा है। आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में विभिन्न कक्षा में 25 बच्चों का एडमिशन व पठन-पाठन निश्शुल्क का प्रावधान है। कठिन दौर से गुजर रहा प्राइवेट स्कूलों का संचालन प्राइवेट स्कूल के एक छात्र के अभिभावक राजीव कुमार ने दूरभाष पर बताया कि प्राइवेट स्कूलों में आरटीई का पालन नहीं करने वाले स्कूलों पर आवश्यक कार्रवाई किया जाना चाहिए। बाबूबरही गांव निवासी संतोष कुमार ने बताया कि आरटीई के तहत अभियान चलाकर प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को लाभ मुहैया कराया जाना चाहिए। बेनीपट्टी निवासी सुरेन्द्र मिश्रा ने बताया कि आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में कक्षा एक के सौ में 25 बच्चों का फ्री एडमिशन के प्रावधान को लागू कराने के लिए जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाया जाना चाहिए। वहीं जयनगर निवासी धीरज महतो ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों के संचालकों के मनमानी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। इधर रहिका प्रखंड के एक निजी स्कूल के संचालक मोहन झा ने बताया कि प्राइवेट स्कूलों का संचालन कठिन दौर से गुजर रहा है। बेरोजगारी के कारण युवा इस ओर आगे आ रहे है। सरकार को प्राइवेट स्कूल के संचालकों की समस्या को दूर करना चाहिए।
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