राष्ट्रीय ध्वज के रंगों को अपनी लेखनी में उतारा
जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसब पाही गांव वासी व सूरत (गुजरात) स्थित सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत डॉ. सदन झा नई पीढ़ी के स्थापित लेखकों में गिने जाते हैं।
मधुबनी। जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसब पाही गांव वासी व सूरत (गुजरात) स्थित सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत डॉ. सदन झा नई पीढ़ी के स्थापित लेखकों में गिने जाते हैं। यहां की ऐतिहासिक धरोहरों पर इनके शोधात्मक आलेख विभिन्न उच्चस्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों को काफी सहयोग करते हैं। इनकी पहली पुस्तक 'इंडियन नेशनल फ्लैग' है। राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान तिरंगा पर लिखी गई इस पुस्तक का प्रकाशन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से वर्ष 2016 में हुआ था। डॉ. झा ने कहा कि पहली पुस्तक प्रकाशित हुई तो उस समय उत्साहवर्द्धक उपलब्धि मुझे महसूस हो रही थी जो आज भी अविस्मरणीय है। कहा कि इस पुस्तक की तथ्यात्मक विषय वस्तु पर प्रख्यात इतिहासकार दीपेश चक्रवर्ती ने प्रभावी ढंग से प्रकाश डाला और मुझे बधाई दी थी। साथ ही राजनीतिक विश्लेषक भीखू पारेख ने पुस्तक की उपादेयता को प्रतिपादित किया था। इस पुस्तक की सारगर्भित समीक्षात्मक टिप्पणी में मूर्धन्य इतिहासकार सव्यसाची भट्टाचार्य ने इस पुस्तक के तथ्यात्मक महत्व को दर्शाया है। डॉ. झा आगे कहते हैं कि देश के आमजनों के योगदान तथा तिरंगा से स्वाधीनता संग्राम के साथ विकास के भावनात्मक लगाव पर मेरी पहली पुस्तक काफी चर्चित रही, जो मेरे लिए प्रेरणा का कारण है। जेएनयू सहित अन्य कई विश्वविद्यालयों में इस पुस्तक पर परिचर्चा हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास विषय पर पीएचडी डिग्री प्राप्त डॉ. झा ने बताया कि मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई तो लोगों के प्रोत्साहन से मैं निरन्तर आगे की ओर बढ़ता गया। वर्तमान में भारत में रंग का इतिहास, कोसी अंचल का इतिहास व सूरत नगरीय समाज पर अनुसंधान कर रहा हूं। पूज्य पिता सवनामधन्य स्व. डॉ. उषाकर झा व भ्राता मदन झा के सान्निघ्य में शुरू से ही शोधपरक अध्ययन-अध्यापन की रुचि रही। जिसने आज इस मंजिल पर पहुंचाया है।