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अलविदा की नमाज अता कर की अमन-सलामती की दुआ

माह-ए-पाक रमजान का चौथा व अंतिम जुमा का नमाज शहर के बड़ा बाजार सुन्नी मरकजी जामे मस्जिद सहित अनेक मस्जिदों में अदा कर अमन व सलामती की दुआ की गई।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Jun 2017 03:01 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jun 2017 03:01 AM (IST)
अलविदा की नमाज अता कर की अमन-सलामती की दुआ
अलविदा की नमाज अता कर की अमन-सलामती की दुआ

मधुबनी। माह-ए-पाक रमजान का चौथा व अंतिम जुमा का नमाज शहर के बड़ा बाजार सुन्नी मरकजी जामे मस्जिद सहित अनेक मस्जिदों में अदा कर अमन व सलामती की दुआ की गई। रमजान को ले विभिन्न मस्जिदों व उसके आसपास की साफ-सफाई का खास खयाल रखा जा रहा है। वहीं मस्जिद तक पहुंचने वाले सड़कों के किनारे गंदगी की नियमित सफाई होता देखा जा रहा है। इफ्तार में रोजेदारों की भीड़ बढ़ने लगी है। वहीं ईद को ले बाजार की रौनकता काफी बढ़ गई है। पर्व की खरीदारी को लेकर बाजार में महिलाएं व बच्चों की काफी चहल-पहल देखी जा रही है। जगह-जगह सड़क किनारे रंग-बिरंगे कपड़ों की दुकानों पर खरीदारों का हुजुम देखा जा रहा है। वहीं इत्र, टोपी सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं की जमकर खरीदारी चल रही है।

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माहे मुबारक रमजान का तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी

फोटो 23 एमडीबी 10

रमजान की महत्ता पर चर्चा करते हुए अंजुमन इत्तेहादे मिल्लत के संयोजक अमानुल्लाह खान कहते हैं कि अल्लाह तआला का कितना बड़ा एहसान है कि हम सभी मुसलमानों को इस माहे मुबारक के तीसरे अशरे में हर तरह की सहुलियत, आफियत और ईमानी जज्बे के साथ दाखिल फरमाया। इस पर हम अल्लाह तआला का जितना भी शुक्रिया अदा करें कम है। अमानुल्लाह खान कहते हैं कि यूं तो इस माहे मुकद्दस का लम्हा-लम्हा बड़ा कीमती और नुरानी है इसके तमाम दिनों में अनवारे ईलाही और तजल्लीयाते कुदसिया की बारिश होती रहती है। लेकिन ये तीसरा अशरा अपने अंदर कुछ ऐसी खुसुसियत और आमाल रखता है जो माहे रमजान के दूसरे अशरों को हासिल नहीं। हम उन खुसुसियात और आमाल पर एक नजर डालते हैं और अपनी जिन्दगी के अन्दर उन्हें लाने की कोशिश करते हैं।शबेकदर की अहमियत और फजीलतकदर के माने दो आते हैं तकदीर व किसमत और अजमत व मनजिलयत। चूंकि इस रात में एक ऐसी लाफानी किताब नाजिलकी गई जिसने लोगों की तकदरें और किसमत बदल कर रख दी। इसलिए यह रात शबे कदर कहलाई। इस रात का दूसरे रातों पर बुजुर्गी और बरतरी हासिल है। शबे कदर की अहमीयत व फजीलत के लिए यह बात काफी है कि अल्लाह तआला ने इसकी शान में पूरी एक सूरत नाजिल फरमाई। अल्लाह तआला फरमाते हैं, तरजुमा : बेशक हमने कुरआन को लैलतुल कदर यानी बाईज्जत व खैर व बरकत वाली रात में नाजिल किया है। आपको मालूम हो कि लैलतुलकदर क्या है? ये रात हजार महीनों से बेहतर है। इस रात में फरिशते जिबरईल रूहुलअमीन अपने रब के हकुम से हर हुक्म लेकर आते हैं। यह रात सलामती वाली रात होती है तलुए फजर तक। इस रात की अजमत और बुजुर्गी की सबसे बड़ी वजह यह है कि इस रात में कुरआन मजीद का नजूल हुआ जो आसमानी किताबों के सिलसिले की आखरी और मुकम्मल किताब है। यह क्यामत तक तमाम इन्सानों के लिए हिदायत की रौशनी है, मुकम्मल जाबतए हयात है। इसके बाद लोगों को किसी और रहनुमाई की जरूरत नहीं रहती। इस रात में ईबादत का सवाब एक हजार महीनों की इबादत से अफजलइस रात में ईबादत का सवाब एक हजार महीनों की इबादत से अफजल और बेहतर है। इस रात की फजीलत की तीसरी वजह फरिशतों का नुजूल है जिनके साथ फरिशतों के सरदार हजरत जिब्रईल अलैहिस्सलाम तसरीफ लाते हैं ताकि अल्लाह के नेक बंदों की हौसला अफजाई करें और उनके लिए दुआ करें जो खड़े या बैठे अल्लाह का जिक्र कर रहे हों उनको सलाम व मुसाफा करें और उनकी दुआ पर आमीन कहें। शबे कदर की फजीलत की चौथी वजह यह है कि पूरी रात सरापा अमन व सलामती वाली है। जिसमें अल्लाह तआला की तरफ से रहमत व मगफिरत का नजूल आम होता है जिसमें मोमिन बन्दा शैतान की शर से महफूज होकर रब की इबादत में लगा रहता है। इस रात की पांचवीं फजीलत यह है कि साल में होने वाले मौत व हयात और रिज्क के बारे में साल भर का फैसला किया जाता है। शबे कदर रमजान के आखरी अशरे की ताक रातें यानी 21, 23, 25, 27, 29 में से कोई एक रात है। इसकी दलील नबी पाक सल्ललाहु अलैहे वसल्लम का फरमान है।


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