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रमजान के आखरी अशरे की पांच रातों में से कोई एक शबे कदर होती

मधुबनी। कोरोना संकट के बीच लॉकडाउन में शुरू रमजान में रोजा रखा जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2020 01:15 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2020 06:14 AM (IST)
रमजान के आखरी अशरे की पांच रातों में से कोई एक शबे कदर होती
रमजान के आखरी अशरे की पांच रातों में से कोई एक शबे कदर होती

मधुबनी। कोरोना संकट के बीच लॉकडाउन में शुरू रमजान में रोजा रखा जा रहा है। इस्लाम धर्मावलंबियों के घरों के अन्य सदस्यों के साथ बच्चे भी पूरी तन्मयता के साथ रोजा रख रहे हैं। लॉकडाउन को लेकर सामूहिक तरावीह व इफ्तार से परहेज किया जा रहा है। फिजिकल डिस्टेंसिग का ख्याल रखते हुए रोजेदारों के घरों में ही तरावीह पढ़ी जा रही है।इफ्तार के समय फिजिकल डिस्टेंसिग का निश्चित रूप से पालन किया जाता है। रमजान को लेकर फल समेत अन्य आवश्यक सामग्री के लिए रोजेदारों सुबह में बाजार में देखे जाते है। मास्क लगाए किराना बाजर में सामग्री की खरीदारी करते हुए फिजिकल डिस्टेंसिग का पालन करते है।

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अल्लाह के घर में दाखिल होकर सारा वक्त अल्लाह की याद में बसर करें

फोटो 27 एमडीबी 5

मौलाना फिरोज रजा ने कहा कि रमजान के आखरी अशरे की पांच रातों में से कोई एक शबे कदर होती है। इन पांच रात 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं एवं 29वीं रातों को खासतौर पर इबादत, तेलावत और जिक्रेइलाही में गुजारना चाहिए। पूरी रात मुमकिन ना हो तो आधी रात के बाद सेहरी तक दो तीन घंटे गुजारें। हाथ बांध कर खड़े हों, सिजदा में पेशानी जमीन पर टेक दें, रोयें और गिरगिराएं अपने गुनाहों से तौबा करें। नबी करीम सल्लल्लाहों अलैहे वसल्लम रमजान के आखरी अशरा में एतकाफ फरमाया करते थे। हजरत आयशा रजिअल्लो अन्हा बताती हैं कि जब रमजान का आखरी अशरा आता तो प्यारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम अपनी कमर कस लेते, रातों को जागते, अपने घर वालों को जगाते और इतनी मेहनत करते जितनी किसी और अशरा में न करते (बुखारी, मुस्लिम) एतकाफ की असल रुह यह है कि बंदा कुछ समय के लिए दुनिया के हर काम, मशगेला और दिलचस्पी से कट के अपने आप को अल्लाह के लिए वक्फ करदे। बीवी बच्चे और घर बार छोड़ के अल्लाह के घर में दाखिल होकर सारा वक्त अल्लाह की याद में बसर करें। एतकाफ का हासिल यह है कि बंदे की पूरी जिंदगी ऐसे सांचे में ढल जाए कि अल्लाह को और उसकी बंदगी को हर चीज पर फौकियत और तरजीह हासिल हो।

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'रोजा रखने में बड़ा सुकून मिलता हैं। परिवार के अन्य स्वजनों के साथ रोजा रखते है। रमजान में बेवजह घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। लॉकडाउन से घर में रहने का लाभ बच्चों को मिल रहा है। गर्मी बढ़ने के कारण भी दोपहर में किसी को भी घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।'

- फरहीन फातिमा

फोटो 27 एमडीबी 6 'लॉकडाउन में घर में रहकर रोजा रखते है। रोजा रखते हुए अपनी पढ़ाई करते हैं। घर की स्वच्छता को बहाल रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। शाम में घर में इफ्तार के समय फिजिकल डिस्टेंसिग का पालन निश्चित रूप से करते है। रोजा रखने से मन पवित्र रहता है।'

- मो. अल्ताफ

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