ऐसे में कैसे होगा खुले में शौच से मुक्त शहर
मधुबनी। छोटा सा अपने शहर को सुंदर बनाने की अब तक के दावे का दम निकलता नजर आ रहा हैं। शहरी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त कराने की कोशिश के बीच शहर के बीचोंबीच गंगासागर तालाब के एक भिंडा पर खुले में शौच की कुव्यवस्था पर लगाम नही लग पा रही हैं। न जाने क्यों नगर परिषद प्रशासन की कदम और नजर गंगासागर तालाब के इस भिंडा की ओर पहुंच पा रही हैं।
मधुबनी। छोटा सा अपने शहर को सुंदर बनाने की अब तक के दावे का दम निकलता नजर आ रहा हैं। शहरी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त कराने की कोशिश के बीच शहर के बीचोंबीच गंगासागर तालाब के एक भिंडा पर खुले में शौच की कुव्यवस्था पर लगाम नही लग पा रही हैं। न जाने क्यों नगर परिषद प्रशासन की कदम और नजर गंगासागर तालाब के इस भिंडा की ओर पहुंच पा रही हैं। आश्चर्य तो इस बात का हैं कि नगर परिषद प्रशासन शहरी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त करने संबंधी बोर्ड रेलवे स्टेशन जैसे परिसर में लगाई गई थी जो अब नजर नही आ रहा है और ना ही गंगासगर तालाब के एक भिडा पर खुले में शौच पर रोक नही लग सकी। गंगासागर तालाब भिन्डा पर कोई बोर्ड नहीं है और यहां खुले में शौच करने वालो पर कोई कार्रवाई भी नही हो पा रही हैं। शहर के धार्मिक व ऐतिहासिक माने जाने वाले इस तालाब के एक भिन्डा पर खुले में शौच की कुव्यवस्था पर शायद नगर परिषद प्रशासन की नजर पहुंच पाई हैं। बहरहाल ऐसे में कैसे होगा शहर खुले में शौच से मुक्त। इस तरह अतिक्रमण के प्रति गंभीरता का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता अपने शहर की सूरत को अतिक्रमण ने बदसूरत बना रखा है। अतिक्रमण ने शहर की सुंदरता घटाने के साथ सड़क जाम जैसी समस्याओं को बढ़ाकर रख दिया है। शहर में अतिक्रमणकारियों के बढ़ते दबदबा को कम करने में प्रसाशन की उदासीनता भारी भूल साबित हो रही हैं। धीरे-धीरे इसका खामियाजा आम लोगों को प्रतिदिन भुगतना पड़ रहा हैं। अतिक्रमण से हो रही परेशानी से निजात दिलाने की दिशा में प्रशासन की वर्षों से महज आश्वासन अब शहरवासियों को खलने लगा है। सवाल हैं कि शहरी क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कराने में प्रशासन आगे क्यों नही आ रही हैं। क्या शहर को अतिक्रमण से मुक्त कराना प्रशासन के बूते से बाहर की बात हो गई है या फिर प्रशासन अतिक्रमणकारियों के समक्ष लाचार बन चुका है, जैसे शहरवासियों के कई सवालों का जवाब नहीं मिल रहा हैं। शहर में सड़क किनारे फुटपाथी दुकानदारों का अतिक्रमण हटाया जाता रहा हैं। इसके दूसरे ही दिन ही फुटपाथियों कब्जा कायम हो जाता हैं। इस तरह प्रशासन के अतिक्रमण के प्रति गंभीरता का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है। शहर में अतिक्रमणकारियों का मनोबल बढ़ा हैं। अतिक्रमण हटाना अब सिर दर्द साबित हो रहा है। चरमरा चुकी यातायात व्यवस्था के बीच ट्रैफिक सिस्टम की बात करना ही बेमानी साबित हो रहा हैं। बाजार में बेतरतीब ठहराव से आम लोगों को आवागमन में परेशानी की चिता किसी को नहीं है। सड़क पर ही दुकान चलाने वालों को कोई रोकने टोकने नहीं है। सड़क जाम पर मैं तो अपना मुंह बंद ही रखूंगा आजकल सड़क जाम का डिमांड काफी बढ़ गया हैं। इन दिनों बात-बात पर सड़क जाम आंदोलन काफी आसान हो गया हैं। किसी भी समस्या का समाधान हो या ना हो सड़क जाम तो सफल होगा ही। इसके लिए करना कुछ भी नही होता। चौराहा पर कुछ समर्थकों द्वारा सड़क जाम कर चौराहे पर टायर जला देना हैं। ऐसा करने पर स्वाभाविक रूप से वाहनों का परिचालन ठप हो जाएगा। आम लोगों की आवाजाही बाधित हो जाएगी। मौके पर मीडिया वालों की कैमरा चमकेगी। अब सवाल उठता है कि सड़क जाम के बजाय शासन-प्रशासन को अपनी मांगों को से अवगत कराने के लिए क्या बंद ही एक विकल्प रह गया हैं या शांतिपूर्ण आंदोलन के और भी उपायों पर अमल किया जा सकता हैं। सवाल है कि सड़क जाम से आम लोगों को कितनी परेशानी होती हैं। बच्चों का विद्यालय जाना बाधित हो जाता हैं। ट्रेन व बसों से इलाज को जाने वाले लोग की स्थिति बिगड़ने लगती हैं। सड़क जाम कर आम लोगों को संकट में डालना आम लोगों के अधिकार का हनन तो नही और। बहरहाल बंद के मसले पर मैं तो अपना मुंह बंद ही रखूंगा।