भगवान की सबसे विशिष्ट रचना है मानव : भरतशरण
भगवान की सबसे विशिष्ट रचना मानव है। यह योनि बहुत ही त्याग तपस्या के बाद मिलती है।
मधुबनी। भगवान की सबसे विशिष्ट रचना मानव है। यह योनि बहुत ही त्याग तपस्या के बाद मिलती है। लोगों को यह जीवन व्यर्थ नहीं बिताना चाहिए। मनुष्य का पुण्य और पाप दोनों भगवान के कोष में जमा होता रहता है। जमा पुण्य उसके जीवन को निखारने का काम करता है, जबकि पाप जीवन को नर्क बनाने में सहायता करता है। व्यक्ति को पुण्य करने की निरंतरता बनाई रखनी चाहिए। ये बातें नेपाल के मलिवारा मठाधीश संत भरतशरण दास जी महाराज ने मधवापुर प्रखंड के रैमा गांव स्थित स्वर्गीय अवधेश्वर स्मृति भवन में शिष्यों और भक्तों को संबोधित करते हुए कही। संत ने कहा कि प्रभु के विशेष कृपापात्र को ही उनकी भक्ति करने का सौभाग्य मिलता है। उन्होंने गृहस्थी जीवन में भगवान की भक्ति विषय पर बता कर लोगों को भगवान की भक्ति करने के लिए प्रेरित किया। संत ने कहा कि गृहस्थाश्रम में बुजुर्गों की सेवा और आपसी सदभावना भी पूजा के समान है। पारिवारिक जीवन में भी गरीबों को दान, दुखियों की सेवा, लाचारों को उपकार कर पुण्य का भागी बनना चाहिए। फुर्सत निकाल कर रोज श्रीसीताराम नाम का जप नियमित करना चाहिए। इससे जहां संकट निवारण होता है। वहीं परिवार का भविष्य भी संवरता है।
मौके पर शुब्बा बाबु, शत्रुमर्दन कुमार दीपक, समरेन्द्र कुमार, भोगी यादव सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।