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धराशायी हो रहीं धरोहरें, विकास की चर्चा तक नहीं

प्राचीन मंदिर और पुरातात्विक स्थल। प्राचीन काल से पंचदेवोपाशक परंपरा। शिवालय शक्तिपीठ और बौद्ध स्थल की लंबी श्रृंखला।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 11:31 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 11:31 PM (IST)
धराशायी हो रहीं धरोहरें, विकास की चर्चा तक नहीं
धराशायी हो रहीं धरोहरें, विकास की चर्चा तक नहीं

मधुबनी। प्राचीन मंदिर और पुरातात्विक स्थल। प्राचीन काल से पंचदेवोपाशक परंपरा। शिवालय, शक्तिपीठ और बौद्ध स्थल की लंबी श्रृंखला। मधुबनी की धरती की यही तो समृद्ध परंपरा रही है। प्राचीन और अनमोल धरोहरों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किए जाने के कारण कई प्राचीन मंदिर और पुरावशेषों के नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा। शिव, शक्ति, बौद्ध व अन्य प्राचीन स्थलों के संरक्षण का प्रयास आजादी के बाद हुआ हो, यह देखने को नहीं मिलता। कुछ के संरक्षण व संव‌र्द्धन की घोषणा हुई, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। लिहाजा उपेक्षित होते चले गए।

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खुले में स्थापित हैं आधा दर्ज शिवलिंग

मिथिला के लोग पंचदेवोपाशक हैं। मिथिला का मधुबनी क्षेत्र समृद्ध है। कपिल मुनि द्वारा स्थापित कपिलेश्वर नाथ शिवालय रहिका प्रखंड में है। बेनीपट्टी के शिवनगर में महाभारतकालीन गांडिवेश्वर शिव सहित परिसर में अनेक प्राचीन शिवालय हैं। राजा विराट द्वारा स्थापित चार फुट ऊंचा शिवलिग है। इसी क्षेत्र के बगल के गांव में मिट्टी की खोदाई से प्राप्त आधा दर्जन शिवलिग खुले में स्थापित हैं। उच्चैठ में महाकवि कलिदास से जुड़ा उच्चैठ दुर्गा विराजमान हैं। इसी परिसर में बाबा कामदानाथ का प्राचीन शिवलिग है। यहां के तालाब की खोदाई में आधा दर्जन आकर्षक शिवलिग व अन्य देवों की प्रतिमा प्राप्त हैं। रहिका प्रखंड के डोकहर में माता शिव-पार्वती की युग्म प्रतिमा व उसके नीचे बाबा दुखहरनाथ मौजूद हैं। यह करीब दो हजार साल पुराना है।

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जयनगर का शिलानाथ शिवालय काफी प्राचीन

झंझारपुर के विदेश्वर शिवलिग, मैवी में बाबा तपेश्रर नाथ। इसी परिसर में मां काली व ब्रह्मा की प्रतिमा मौजूद हैं। जयनगर का शिलानाथ शिवालय काफी प्राचीन है। राजनगर के मंगरौनी गांव तो मानों स्वयं में एक सिद्धपीठ है। यहां यंत्र रूप में भगवमी बूढ़ी माई, तंत्र विधा पर आधारित माता भुवनेश्वरी एवं एकादशरुद्र की छटा दिखती है। महाराज रमेश्वर सिंह द्वारा स्थापित नगर के भौआड़ गढ़ी परिसर में तीन मंजिला काली मंदिर अवस्थित है। मां काली के गर्भगृह के पीछे महाराज रामेश्वर सिंह का साधना कक्ष है, जिसमें हजारबाहु काली सहित अन्य दुर्लभ प्राचीन प्रतिमाएं हैं। इसका सही तरीके से रख-रखाव नहीं होने से चोरी का खतरा है। भोजपंडौल में एक पेड़ के सूख कर गिर जाने से उसकी जड़ से दुर्गा, गणेश, सूर्य आदि की प्रतिमा मिली थी। बेनीपट्टी के सलेमपुर में तालाब खोदाई के समय विष्णु के विभिन्न अवतार की प्रतिमा मिली। अंधराठाढ़ी के पस्टन में बौद्ध बिहार मौजूद है।

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पर्यटन के नक्शे पर लाने की हो पहल

जिले के बाबूबरही प्रखंड में विशाल राजखंड का खंडहर मौजूद है। इसकी खोदाई तीन बार आधी अधूरी रूप में हो चुकी है। इसमें तीन काल के महत्वपूर्ण पुरासामग्री प्राप्त है। लेकिन, अब तक पूरी खोदाई नहीं होने से इसके बारे में इसके बारे में जानकारी नहीं मिली है। यहां के पुराने लोगों का कहना है कि धार्मिक सहित तमाम पुराने स्थलों को विकसित कर दिया जाए तो पर्यटन को नया स्वरूप दिया जा सकता। राजनगर राज परिसर को विकसित कर पर्यटन स्थल के रूप मधुबनी को पर्यटन के नक्शे पर लाया जा सकता। इसके लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। चुनावों में बड़े-बड़े वादे होते हैं, लेकिन समय पर इसकी कोई सुध तक नहीं लेता।

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बयान

प्राचीन धार्मिक और पुरातत्व स्थलों के संरक्षण की आवश्यकता है। भारतीय पुरातत्व विभाग ऐसे स्थलों को सूचीबद्ध कर इसका विकास कर रहा।

शिवकुमार मिश्र, सहायक क्यूरेटर, लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा


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