कंप्यूटर शिक्षा के साथ स्मार्ट क्लास का दावा ढकोसला
निजी स्कूलों का संचालन विभागीय कसौटी पर खड़ा नहीं उतरने के बाद भी इसका संचालन धड़ल्ले से चल रहा है।
मधुबनी। निजी स्कूलों का संचालन विभागीय कसौटी पर खड़ा नहीं उतरने के बाद भी इसका संचालन धड़ल्ले से चल रहा है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में प्राइवेट स्कूल खोले जा रहे हैं। इन स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा के साथ स्मार्ट क्लास का दावा ढकोसला साबित हो रहा है। अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में खेल मैदान, समुचित भवन व शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखा जाता है। वहीं शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार नही देखी जा रही है। शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) का जिले के प्राइवेट स्कूलों में पालन नही होने से आíथक रूप से कमजोर बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। इसे लागू कराने के प्रति प्राइवेट स्कूल के संचालक व शिक्षा विभाग उदासीनता रहा है। एडमिशन के नाम पर होती मोटी रकम की मांग
आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में विभिन्न कक्षा में 25 बच्चों का एडमिशन व पठन-पाठन नि:शुल्क का प्रावधान है।
प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन, शिक्षण काफी महंगे होने के कारण मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में नहीं पढ़ा पाते हैं। प्राइवेट स्कूलों का संचालन हो रहा है जिसमें एडमिशन के नाम पर मोटी रकम की मांग की जाती है। शिक्षण व वाहन चार्ज का बोझ बच्चों के परिजनों पर डाल दिया जाता है। ऐसे स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का कोई खयाल नहीं होता। अनेकों प्राइवेट स्कूलों में कुशल शिक्षक का अभाव भी होता है। सिकटियाही उत्क्रमित उच्च विद्यालय में शिक्षकों की कमी
जिले के खुटौना प्रखंड के सिकटियाही गांव निवासी राजदीप ¨सह ने दूरभाष पर बताया कि सिकटियाही उत्क्रमित उच्च विद्यालय में आरटीई का पालन नहीं हो रहा है। विद्यालय में शिक्षकों की कमी वर्ष 2014 से बनी है। बाबूबरही प्रखंड के मुरहद्दी गांव निवासी मोहन कुमार ने कहा कि आरटीई के तहत अभियान चलाकर प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को लाभ मुहैया कराया जाना चाहिए। पंडौल निवासी राजकुमार ने बताया कि आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में कक्षा एक के सौ में 25 बच्चों का फ्री एडमिशन के प्रावधान को लागू कराने के लिए जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाया जाना चाहिए। वहीं राजनगर प्रखंड के एक निजी स्कूल के संचालक हीरा कुमार ने बताया कि प्राइवेट स्कूलों की संख्या दिनानुदिन बढने से स्कूलों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है। बच्चों के परिजन शिक्षण शुल्क ससमय भुगतान नहीं कर पाते हैं। बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के खयाल से प्राइवेट स्कूलों का संचालन घाटे का सौदा साबित हो रहा है।
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