जल संरक्षण के साथ वैकल्पिक फसल उगाने में जुटे
जलवायु परिवर्तन के बीच हरियाली बहाल रखने के लिए जल संरक्षक के उपायों को अमल में लाकर परंपरागत कृषि कार्य को हो रहे नुकसान से बचने में वैकल्पिक कृषि कार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मधुबनी। जलवायु परिवर्तन के बीच हरियाली बहाल रखने के लिए जल संरक्षक के उपायों को अमल में लाकर परंपरागत कृषि कार्य को हो रहे नुकसान से बचने में वैकल्पिक कृषि कार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए जिले के राजनगर व खजौली प्रखंड के 50 गांवों के किसान वैकल्पिक फसल उगाने में आगे बढ़ रहे हैं। पशु चारा, कांटा रहित ¨सघारा, कदवा बगैर धान की सीधी रोपाई सहित अन्य फसलों को उगाकर जल संरक्षण काफी उपयोगी साबित हो रहा है। कम पानी में पशु चारा के लिए अजोला का उत्पादन जल संरक्षण के लिए घर के निकट पांच फीट वाले पानी से भरे गड्ढे में अजोला का बीज डाल दिया जाता है। इसमें से प्रति सप्ताह अजोला की फसल पशुओं को चारा के रुप में दिया जाता है। गड्ढे में एक बार बीज डालने से छह माह तक अजोला की फसल निकाली जा सकती है। धान की खेत में पानी लगने पर कांटा रहित ¨सघारा का उत्पादन लाभकारी साबित हो रहा है। राजनगर प्रखंड के महाराजगंज की शिवकुमारी देवी, सुनिता देवी, हीरा देवी, खजौली प्रखंड के गोबरौरा गांव के किसान सिकंदर केवार के अनुसार धान की सीधी रोपाई कदवा बगैर खेतों में आसानी होता है। पानी और कदवा की झंझट से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा जल रहित मशरुम सहित अन्य फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। खेत खाली नही छोड़ने
राजनगर प्रखंड स्लैक परियोजन के युवा सलाहकार प्रीती माला ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के दिशा में वैकल्पिक खेती के तौर पर किसानों को खेत खाली छोड़ने के बजाय उसमें मरुआ, सामा, कउनी, जौ, बाजरा, अरहर, उड़द, कुर्थी, मूंग, राजमा के अलावा सब्जी उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन से बन रहीं परिस्थिति के आलोक में राष्ट्रीय अजीविका मिशन, विश्व बैंक व जीविका के संयुक्त तत्वावधान में संवहनीय आजीविका एवं अनुकूलन हेतु जलवायु परिवर्तन परियोजना (स्लैक) के तहत कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। जीविका के तहत राजनगर प्रखंड के रामपट्टी करहिया सिमरी गोट में कस्टम हाय¨रग सेंटर की स्थापना एक वर्ष पूर्व किया गया। टपक योजना के तहत खेत की ¨सचाई के लिए जरुरत के अनुसार ही बूंद-बूंद पानी मिलता है। इससे न तो फसल बर्बाद होने की ¨चता रहती है और न ही भूमिगत जल का दुरुपयोग होता है। जल के संरक्षण को सभी लोगों को भी आगे आना चाहिए।
- अरुण राय, जल संरक्षक
स्नान के लिए चापाकल से निकलने वाले जल को स्नान के बाद शेष जल को फेंकने के बजाय उसका उपयोग शौचालय में करते है। छत पर बनाए गए टप में हजारों लीटर वर्षा जल का संचय कर कई दिनों तक पेड़-पौधा की ¨सचाई करते है।
- अमरनाथ झा, जल संरक्षक
वर्षा जल का विभिन्न पात्रों में संचय कर कई दिनों तक घरों की साफ-सफाई सहित अन्य कार्यों में उपयोग करते है। वर्षा जल का संचय के साथ ही भूमिगत जल की बचत होती है। वर्षा जल की शुद्धि के बाद उसे पेयजल के रुप में सेवन किया जा सकता है।
- बालाजी मिश्रा, जल संरक्षक