बलान रेल सह सड़क पुल को किया गया बंद
सकरी-निर्मली तथा झंझारपुर-लौकहा रेलखंड पर आमान परिवर्तन ने झंझारपुर वासियों का जीवन मुश्किल में डाल दिया है।
मधुबनी। सकरी-निर्मली तथा झंझारपुर-लौकहा रेलखंड पर आमान परिवर्तन ने झंझारपुर वासियों का जीवन मुश्किल में डाल दिया है। अभी तक तो झंझारपुर रेलवे स्टेशन बाजार की अंदरूनी सड़कें जलजमाव तथा निर्माण कार्य के लिए बाधित थी, लेकिन रेलवे ने सुरक्षा का कारण लगाकर ऐतिहासिक कमला बलान रेल सह सड़क पुल से आवागमन को पूर्णत: बंद करने का आदेश दे दिया है। यह आदेश पूर्व मध्य रेल समस्तीपुर के मंडल रेल प्रबंधक ने दिया है। अखबारों में इसकी विज्ञप्ति भी निकाली गई है तथा एसडीओ को भी पत्र भेजा गया है। इसमें न सिर्फ भारी वाहन बल्कि किसी भी वाहन के प्रवेश पर रोक है। यदि कोई वाहन के साथ पुल पार करते पकड़ाता है तो जुर्माना लगाने का आदेश दिया गया है। लोगों की सुविधाओं का ख्याल नहीं रखा गया। क्या है मामला बीते ढ़ाई वर्ष पूर्व करीब बिहार सरकार ने इस पुल से आवागमन को व्यवस्थित रखने के लिए करीब एक करोड़ की राशि रेलवे को दी थी। ताकि पुल का जीर्णोद्धार हो सके। ऐनकेन प्रकारेण जीर्णोद्धार कराया गया जो जीर्णोद्धार के तीन माह बाद ही टूटने लगा। तत्कालीन विधायक सह मंत्री नीतीश मिश्रा ने इस मामले में सवाल उठाया था। आवाम परिवर्तन प्रारंभ होने से पूर्व तक यह पुल रेलवे के लिए असुरक्षित नहीं थी। लेकिन, अब असुरक्षित हो गई है। लोगों का कहना है कि पुल की पटरियां उखड़ गई है। रेलवे इस पुल में रुचि नहीं ले रहा और इस कारण पुल को ही असुरक्षित करार दे दिया। आम लोगों की परेशानी का कोई ख्याल नहीं रखा। क्या होगी परेशानी रेलवे स्टेशन बाजार, मधेपुर, लखनौर, मदनपुर, अवाम, नरूआर, बेहट, कैथिनियां, पथराही तथा दरभंगा जिला के राजाखड़वार जाने के लिए लोग इस पुल का इस्तेमाल करते हैं। अब लोगों को विदेश्वर स्थान होकर नए पुल से करीब बारह से चौदह किलोमीटर घूमकर आना पड़ेगा। इससे लोगों को समय के साथ साथ आर्थिक बोझ उठाना होगा। जबकि मामूली कुछ पटरियां बदलकर रेलवे आम लोगों की सुविधा जारी रख सकती थी। अभी बिहार सरकार द्वारा इस पुल के समानान्तर बनाए जाने वाले पुल के पूर्ण होने में करीब एक वर्ष से ज्यादा का समय लगना अपेक्षित बताया जाता है। ऐतिहासिक है पुल इस ऐतिहासिक रेल सह सड़क पुल के संरक्षण के लिए यहां के जनप्रतिनिधियों ने कभी ध्यान नहीं दिया। रेलवे पुराने लोको इंजन को धरोहर के रूप में रख सकती है तो फिर इस पुल को धरोहर के रूप में रखने के प्रयास नहीं होना रेलवे की दोरंगी नीति को दर्शाता है। इस पुल से आवागमन बनाए रखने तथा संरक्षित के लिए कई पार्टी के नेताओं ने आंदोलन की रूप रेखा बनानी भी शुरू कर दी है।