अंग्रेजी शिक्षा नीति के कारण संस्कृत को नहीं मिला हक : डॉ. सुरेंद्र मोहन
मधेपुरा : भारत की 70 प्रतिशत पांडुलिपियां संस्कृत भाषा में ही हैं इसलिए भारत को समझने के ि
मधेपुरा : भारत की 70 प्रतिशत पांडुलिपियां संस्कृत भाषा में ही हैं इसलिए भारत को समझने के लिए संस्कृत को जानना-समझना जरूरी है। यह बात संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डॉ. सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने कही। वे बुधवार को केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में आयोजित 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि अंग्रेज अधिकारी मैकाले की शिक्षा नीति ने संस्कृत को काफी नुकसान पहुंचाया। अंग्रेजी शिक्षा नीति के कारण ही आज तक संस्कृत को उसका वाजिब हक एवं सम्मान नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया संस्कृत के महत्व को समझ रही है। संस्कृत को लेकर अन्य देशों में वैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय एवं सांस्कृतिक ²ष्टि से शोध हो रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी भारत में संस्कृत एवं दर्शन के अध्ययन-अध्यापन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दूसरा व्याख्यान महावीर मंदिर, पटना के पब्लिकेशन एवं रिसर्च ऑफिसर भावनाथ झा ने दिया। उन्होंने मिथिलाक्षर लिपि की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संस्कृत के माध्यम से ही दुनिया को ग्रंथ संपादन कला सीखने को मिला। कम-से-कम पांच हजार वर्ष पूर्व महर्षि कृष्ण दोपायन व्यास ने संस्कृत भाषा में वैदिक ज्ञान-विज्ञान का प्रथम संपादन किया। यह संपूर्ण विश्व में पहला संपादन है। इस अवसर पर पार्वती साइंस कॉलेज के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्राध्यापक डॉ. ललन प्रसाद अद्री, पूर्व निदेशक डॉ. बसंत कुमार चौधरी, डॉ. अशोक कुमार, पीआरओ डॉ. सुधांशु शेखर, इवेंट मैनेजर पृथ्वीराज यदुवंशी, डॉ. सरोज कुमार, डॉ. अरूण कुमार ¨सह, सिद्दु कुमार, सोनू कुमार ¨सह, अंशु आनंद, रंजन कुमार मिश्र, कपिलदेव यादव, पवन कुमार दास, मु. आफताब आलम, मृत्युंजय कुमार ¨सह, संदीप कुमार, मु. फसीउद्दीन, मु. सोएब अख्तर सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिभागी उपस्थित थे।
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