कुम्हारों के द्वारा निर्मित दीप की जगह हो रहा आधुनिक बल्ब का उपयोग
फोटो - 05 एमएडी 42 संवाद सूत्र,मुरलीगंज(मधेपुरा): आधुनिकता के इस दौड़ में कम्हारों के
फोटो - 05 एमएडी 42
संवाद सूत्र,मुरलीगंज(मधेपुरा): आधुनिकता के इस दौड़ में कम्हारों के द्वारा निर्मित दीप अपना अस्तित्व खोने के कगार पर हैं। मिट्टी के दीप से गुलजार होने वाली दीपावाली पर चाइनीज लाइट का ग्रहण सा लग गया है। दीवाली पर मिट्टी के दीप की बिक्री में कमी आने से कुम्हार काफी परेशान हैं। दीपों का पर्व दीपावली के अवसर पर घरों में बिजली से जलने वाले लाइट, रंग-बिरंगे झालर और बल्व का फैशन छाने लग गया है। अधिकांश लोग दीपावली के अवसर पर अब मिट्टी के दीपों को छोड़ आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग के बल्ब, रंग-बिरंगे लाइट आदि का उपयोग करने लगे हैं। पिछले कुछ सालों से चाइनीज लाइट के अधिकाधिक प्रयोग से मिट्टी के दीप की बिक्री में भारी कमी आई है। इससे कुम्हारों परिवारों पर रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। जोरगामा से सटे रहटा गांव वार्ड पांच निवासी मूलो पंडित, मुकेश पंडित, रामलखन और बेचन ने बताया कि इस बार के दीपावली में शहर के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में भी दिए की मांग कम देखने को मिल रही है। उन्होंने कहा कि जहाँ हमलोग हर वर्ष पांच से सात हजार दिया बेच पाते थे। वहीं इस बार बहुत कम दिया बनाने की उम्मीद लग रही है। उन्होंने बताया कि हमलोग दिये बनाने की मिट्टी यहां से कई कोश दूर लालपुर खोन्ही से साढ़े तीन हजार रुपया में ट्रैक्टर के टेलर से एक टेलर मिट्टी लाते हैं। फिर मिट्टी में से पत्थर के छोटे छोटे कन को बहार करते हैं। फिर मिट्टी को सुखाने के बाद उसे सांचा में देके दीप बनाते है दीप के बन जाने के बाद उसे धूप में सूखा के फिर जलावन के भट्टी में पकाते हैं उसके बाद बाद वह दीप बन कर तैयार हो जाता है। परिवार के कई लोगों के मेहनत करने के बाद फिर हमलोग गांव, शहर में अस्सी से सौ रुपये सैकड़ा की दर से बेचते हैं। उनलोगों ने कहा कि इतना मेहनत करने के बावजूद भी कुछ रुपये की ही बचत हो पाती है। हमलोग समाचार पत्र के माध्यम से बताना चाहते हैं कि अगर इधर मिट्टी मिलने लगती तो आज हमलोग का दिन भी कुछ और होता। वहीं मुरलीगंज प्रखंड के रामपुर वार्ड नंबर आठ निवासी सविता देवी बताती है कि दिया बनाने में हमलोग को काफी मेहनत करनी पड़ती है दिया बन जाने के बाद हमलोगों को पुरे गांव घूमने के बाद इसे बेचना भी पड़ता है।