सूखे खेत में खिसकेगी नेताजी की दरकती जमीन
मधेपुरा । जिला मुख्यायलय से 35 किलोमीटर दूर उदाकिशुनगंज प्रखंड को कई मायनों में अब भी ि
मधेपुरा । जिला मुख्यायलय से 35 किलोमीटर दूर उदाकिशुनगंज प्रखंड को कई मायनों में अब भी विकास की दरकार है। उदकिशुनगंज प्रखंड के साथ अनुमंडल भी है। लेकिन इस क्षेत्र का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। मजदूरी और खेती पर निर्भर होकर जीवन यापन करने वाले लोगों की पीड़ा सहज ही महसूस होती है। रोजगार के साधन नहीं है। अधिकांश लोग चाय, पान की दुकान चलाकर पेट भरते हैं। प्रखंड की आबादी करीब दो लाख है। प्रखंड में 16 पंचायत है। प्रखंड के गांव तक विकास कि किरण नहीं पहुंच पाया। सरकार के स्तर से कुछ काम हुए भी तो आधा से ज्यादा राशि बिचौलियों, स्थानीय जनप्रतिनिधि डकार गए। इस क्षेत्र में सिचाई बड़ी समस्या है। सिचाई के साधन नहीं होने के कारण किसान निजी बोरिग, पंपसेट अथवा किराए के बोरिग से खेती किया करते हैं। इस प्रखंड क्षेत्र में राजकीय नलकूपों की संख्या सात बताई गई। इसमें कुछ खराब है। कुछ जगहों पर नलकूप के आगे खेतों तक पानी ले जाने के लिए चैनल नहीं है। कड़ी धूप के बीच हम मुख्यायलय से सटे रामपुर खोड़ा पंचायत के मझहर पट्टी गांव पहुंचे। इस पंचायत में सात वार्ड है। कुछ लोग गांव में बने छतदार चबूतरा पर बैठे चुनाव पर चर्चा करते नजर आए। यहां पर अपनी गाड़ी खड़ी करते ही मौजूद लोगों ने पूछा-कहां से आए हैं। जानकारी देने के बाद चबूतरे पर बिछाई गई चादर के एक भाग पर बैठने का आग्रह किया। चर्चाओं के बीच हमने भी चुनाव की बात छेड़ दी। दलान पर बैठे लोगों ने बताया कि सांसद हो या विधायक फिर किसी दल के नेता हो चुनाव बाद झांकने तक नहीं आते हैं। गांव के हनुमान ऋषिदेव बताते हैं कि मातम पूर्सी में दो बार सांसद गांव आए थे। लेकिन सरकारी योजना का लाभ उसके गांव वालों को नहीं दिया। गांव में एक सामुदायिक भवन और सार्वजनिक शौचालय की आवश्यकता बताया गया। लोगों ने बताया कि सिचाई का साधन नहीं। नहरों में कभी पानी आता है। कभी नहर सूखी रहता है। जब पानी आता है तो कमजोर बांध टूटकर फसलों को डूबो देती है। कमरूल होदा ने पसंद का पीएम राहुल गांधी को बताया। कुछ युवा ने नरेंद्र मोदी को बेहतर पीएम बताया। यहां पर स्थानीय मुद्दे तो है ही। यद्यपि राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदान करने की बात लोगों ने बताया। वहां से हमारी गाड़ी आगे की ओर बढ़ा। हम मधुबन पंचायत पहुंचे। यहां पर संजय सिंह ने मधुबन से उदा सड़क की दुर्दशा का रोना रोया। आगे आनंदपुरा गांव पहुंचने के रास्ते में कुछ लोग खेतों में गेहूं की फसल तैयारी करते नजर आए। वहां पर किसान ने बताया कि फसल तो हो जाता है। लेकिन सिचाई का दिक्कत। करौती गांव के बाजार पर पहुंचने पर पान दुकानदार विद्यानंद मंडल से बात होने पर बताया कि परिवार चलाने के लिए छोटा सा व्यवसाय है। उसके गांव में समुचित विकास नहीं हुए। करौती महादलित टोले के लोग ने नेताओं को गांव नहीं घुसने देने का मन बना रखा है। वजह बस्ती तक पहुंचने के लिए लोगों को सड़क नहीं है। नयानगर गांव के प्रमोद सिंह बताते है कि मंदिर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जा सका। इसकी पीड़ा स्थानीय लोगों को है। गांव के श्यामल किशोर सिंह ने बताया कि यहां पर थाना बनने का प्रस्ताव रहा। लेकिन थाना नहीं बन पाया। उदाकिशुनगंज प्रखंड के पूर्वी भाग लश्करी पंचायत के मूरलीचंदबा गांव के गजेंद्र मंडल बताते हैं कि किसान हैं। लेकिन खेती के लिए सरकारी लाभ नहीं मिल पाया। आगे बढ़ने पर मंजौरा बाजार मिला। यह पूर्णिया जिले के सीमा को छूता है। यहां पर भी थाना बनने का प्रस्ताव फाइल में दब कर रह गया। स्थानीय विनय जायसवाल, भूषण गुप्ता बताते हैं कि मंजौरा को प्रखंड बनाया जाना चाहिए। रामपुर गांव के सिकेदर अंसारी बताते हैं कि कारीगरी बंद होने से बुनकरों को खाने के लाले पड़ गए हैं। बुनकरों की दशा पर नेताओं ने ध्यान नहीं दिए।