पहले मतदाता के साथ-साथ प्रतिनिधि भी होते थे ईमानदार
मधेपुरा । पहले व अब के पंचायत चुनाव में काफी अंतर आ गया है। पहले मतदाता व प्रतिनिधि दोनों ई
मधेपुरा । पहले व अब के पंचायत चुनाव में काफी अंतर आ गया है। पहले मतदाता व प्रतिनिधि दोनों ईमानदार होते थे।लेकिन समय के साथ दोनों में बदलाव आया है। वर्तमान समय के पंचायत चुनाव में संभावित प्रत्याशी धनबल, बाहुबल के सहारे कुर्सी हथियाने की जुगत में रहते हैं। अब प्रत्याशियों का झूठे वादे के सहारे जनता को गुमराह कर वोट लेना ही मानसिकता बन गई है। प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न पंचायतों में सेवा व विकास के बल पर मतदाताओं की कसौटी पर खरा उतरने वाले कुछ गिने-चुने निवर्तमान प्रतिनिधियों को छोड़ अन्य संभावित प्रत्याशियों में न तो चुनाव जीतने की क्षमता देखी जा रही है और न ही साहस।
मालूम हो कि वर्तमान समय के चुनाव में प्रत्याशी व मतदाता का संबंध दुकानदार व ग्राहक जैसी हो गई है। जबकि दो-तीन दशक पूर्व के समय ऐसी स्थिति नहीं थी। उस समय केवल मुखिया व सरपंच का चुनाव होता था। गांव के बुद्धिजीवी व आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति सर्वसम्मति से गांव के सामाजिक रूप से मजबूत व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए अपना प्रत्याशी घोषित करते थे। उस समय के चुनाव में नामांकन के अलावा अन्य किसी प्रकार का खर्च नहीं होता था। लेकिन वर्तमान समय में चुनाव लड़ना व जीत हासिल करना पूर्ण रूप से व्यवसाय बन चुका है। खासकर युवा वर्ग इस बार के चुनाव में विभिन्न मुद्दों को लेकर काफी मुखर होते जा रहे हैं।
तीन-चार दशक पूर्व मुखिया का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को घर से खर्च नहीं करना पड़ता था। उस समय चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को समर्थक मतदाता ही चंदा देकर चुनाव लड़ाते थे। गांव के पढ़े लिखे या फिर सामाजिक कार्यकर्ता ही चुनाव मैदान में आने की हिम्मत करते थे। चुनाव काफी साफ सुथरा होता था।
राजेंद्र शर्मा
औराय अधिकतर पंचायतों में निर्विरोध सरपंच हुआ करते थे। उस जमाने में ग्रामीण स्पष्टवादी व निडर व्यक्ति को ही सरपंच चुनाव लड़ने के लिए बाध्य करते थे। आज तो मतदाता भी दिन में एक उम्मीदवार के साथ तो रात में दूसरे के साथ रहते हैं। इस परिस्थिति में बिका हुआ मतदाता विकास की उम्मीद कैसे करेगा।
गुमानी ठाकुर
औराय असामाजिक, मूर्ख व जातपात के आधार पर विकास की बात बेइमानी है। चुने गए प्रतिनिधि से स्वच्छ व स्वस्थ पंचायत निर्माण की बात करना खुद के साथ मजाक लगता है। पहले मतदाता ईमानदार थे। इसलिए प्रतिनिधि भी ईमानदार हुआ करते थे।
अशोक कुमार राय
गणेशपुर