भारतीय सभ्यता-संस्कृति व दर्शन में संपूर्ण विश्व की चिता : कुलपति
संवाद सूत्र सिंहेश्वर (मधेपुरा) मधेपुरा। भारतीय सभ्यता-संस्कृति व दर्शन में समग्र जीवन और संप
मधेपुरा। भारतीय सभ्यता-संस्कृति व दर्शन में समग्र जीवन और संपूर्ण विश्व की चिता है। हमारे ॠषि-मुनियों ने न केवल मनुष्य, बल्कि समस्त जीव-जंतु, पशु-पक्षी, प्रकृति-पर्यावरण आदि के बीच मानव जीवन की समरसता स्थापित करने वाली जीवन-दृष्टि विकसित की थी।
उक्त बातें बीएनएमयू के कुलपति प्रोफेसर डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वह आरएम कॉलेज, सहरसा के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय बेबीनार में उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे। यह बेबिनार कोविड-19 के दौर में हरित प्रौद्योगिकी की प्रासंगिकता था। उन्होंने कहा कि प्रकृति में सामान्यत: इसके सभी तत्व एक संतुलित अनुपात में रहते हैं। ये तत्व एक-दूसरे पर इस तरह निर्भर हैं कि यदि किसी एक तत्व को छेड़ा जाए, तो प्रकृति संतुलन में व्यवधान आ जाएगा। इस अवसर पर जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर, एमएड विभागाध्यक्ष डॉ. बुद्धप्रिय, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, डेविड यादव, गौरब कुमार सिंह आदि उपस्थित थे। अहंकार के कारण प्रकृति-पर्यावरण का अनुचित शोषण कर रहा है मानव कुलपति ने कहा कि आज का मानव भोगवादी एवं उपभोक्तावादी जीवन जी रहा है। वह खुद को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी समझता है। मावन अपने अहंकार के कारण वह प्रकृति-पर्यावरण का अनुचित शोषण कर रहा है। मनुष्य की यही सुखवादी एवं उपभोक्तावादी प्रवृत्ति प्रवृति सभी समस्याओं की जननी है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का कहना है कि प्रकृति के पास मनुष्य को देने के लिए बहुत कुछ है, वह प्रत्येक मनुष्य के आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, लेकिन वह उसके लालच को कभी पूरा नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि यदि हम अपरिग्रह एवं ट्रस्टीशिप को अपने व्यवहार में लाएं, तो प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन नहीं होगा। प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन रूक जाएगा और इन संसाधनों के संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।