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बिहार का एक गांव जहां चमगादड़ों की होती पूजा, बन रहा अभयारण्य ...जानिए

बिहार का एक गांव ऐसा भी है जहां चमगादड़ों की पूजा की जाती है। यहां के लोग इसे सुख समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। यहां चमगादड़ों का अभयारण्य बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sat, 31 Mar 2018 05:06 PM (IST)Updated: Sun, 01 Apr 2018 09:11 PM (IST)
बिहार का एक गांव जहां चमगादड़ों की होती पूजा, बन रहा अभयारण्य ...जानिए
बिहार का एक गांव जहां चमगादड़ों की होती पूजा, बन रहा अभयारण्य ...जानिए

सुपौल [प्रशांत कुमार]। हॉरर फिल्मों में भयावहता बढ़ाने के लिए दिखाए जाने वाले चमगादड़ बिहार के सुपौल जिले के लहरनियां गांव में सुख-समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। लोग इनकी पूजा करते हैं। स्थानीय प्रो. अजय सिंह चमगादड़ों का अभयारण्य बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

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इनके पूर्वजों ने चमगादड़ों को बगीचे में पनाह दी और आज अजय उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। 50 एकड़ के इस बगीचे में चमगादड़ों के रहने के लिए खास तौर पर पेड़ लगाए गए हैं। अजय और उनके परिवार के लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि चमगादड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए। यहां हजारों की संख्या में चमगादड़ करते हैं।

दुलर्भ श्रेणी का पक्षी है चमगादड़

लोग बताते हैं कि चमगादड़ों की दो प्रजातियां इस इलाके में पाई जाती हैं। यहां जो चमगादड़ रहते हैं वे शाकाहारी हैं और अन्य चमगादड़ों की अपेक्षा में बड़े हैं। इसे दुर्लभ श्रेणी का चमगादड़ माना जाता है। ये अंधेरे में निकलने हैं और पौ फटने से पहले लौट आते हैं।

कहते हैं ग्रामीण

चमगादड़ पालने वाले इस परिवार के लोग इसे शुभ मानते हैं। ग्रामीण भी इस मान्यता की पुष्टि करते हैं। मु. कैयूम बताते हैं कि 2008 में आई कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ में यह इलाका डूबने से बचा रहा। ग्रामीणों का विश्वास है कि चमगादड़ों के रहने से महामारी नहीं फैलती।

मिलिंद कुमार मदन ने बताया कि सभी ग्रामीण चमगादड़ों की देखरेख करते हैं। संजीव कुमार का कहना है कि प्रशासन को इस बगीचे को अभयारण्य के रूप में विकसित करने की जरूरत है। इसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।


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