8 साल से किराए के मकान में पशु अस्पताल, सुबह 10 बजे भी शटर बंद; इलाज ठप
लखीसराय के तेतरहाट पशु अस्पताल की हालत खस्ता है। दवाइयों की कमी और उपकरणों के खराब होने से पशुपालक परेशान हैं। टीकाकरण अभियान भी ठीक से नहीं चल रहा है ...और पढ़ें

8 साल से किराए के मकान में पशु अस्पताल
अमित कुमार, लखीसराय। बारहों महीने किसानों और पशुपालकों की उम्मीद बने रहने वाले तेतरहाट पशु अस्पताल की हालत इन दिनों ऐसी है कि यहां इलाज की जगह सिर्फ ताले, टूटी खिड़कियां और जर्जर दीवारें ही स्वागत करती हैं।
अस्पताल में दवा की किल्लत इतनी भयावह है कि पशुपालक अपने बीमार मवेशियों को लेकर घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, लेकिन इलाज न मिलने से उन्हें मायूस लौटना पड़ता है। मामला केवल दवा का नहीं है, अस्पताल के अधिकांश उपकरण महीनों से बंद पड़े हैं, कई तो कबाड़ में बदल चुके हैं।
टीके के लिए दर-दर भटकते हैं
टीकाकरण अभियान कागजों पर चलता है, जबकि जमीन पर पशुपालक टीके के लिए दर-दर भटकते रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल में पदस्थापित कर्मी अक्सर अनुपस्थित रहते हैं। कई दिनों तक अस्पताल का गेट तक नहीं खुलता।
अफसरों की मायावी जांच सिर्फ फाइलों तक सीमित रहती है। शनिवार को जागरण टीम ने जब इस अस्पताल का आन द स्पाट जायजा लिया तो सच्चाई खुलकर सामने आई।
9:45 तक अस्पताल का शटर गिरा हुआ था। कुछ देर के बाद अस्पताल के परिचारी सूर्यदेव कुमार पहुंचे। प्रहरी अमित कुमार 10:00 बजे पहुंचे। जागरण प्रतिनिधि ने 10:00 बजे डाक्टर राजीव रंजन कुमार के मोबाइल पर काल किया तो वे कुछ देर में पहुंचे।
33 प्रकार की दवाई पशुओं को इलाज के लिए उपलब्ध
उन्होंने बताया आज मेरा रोस्टर के अनुसार परसावां गांव पशु अस्पताल में ड्यूटी है। सोमवार, बुधवार एवं शनिवार को परसावां पशु अस्पताल में ड्यूटी है। मंगलवार, गुरुवार एवं शुक्रवार को तेतरहाट पशु अस्पताल में ड्यूटी है।
तेतरहाट पशु अस्पताल में तीन महीने पहले किया उन्होंने पदस्थापन होने की बात कही। जबकि परसावां पशु अस्पताल के प्रभार में वे हैं। इस अस्पताल में 33 प्रकार की दवाई पशुओं को इलाज के लिए उपलब्ध है। अपना भवन नहीं रहने के कारण किराए के मकान पर पशु अस्पताल संचालित है।
स्थानीय ग्रामीण उमेश साव एवं कंचन कुमार ने बताया कि यहां का पशु एंबुलेंस परसावां पशु अस्पताल में ही रहती है। पशुपालन विभाग पूरे प्रखंड का काम सिर्फ बैठकों और समीक्षा रिपोर्ट में दिखाता है, जबकि असलियत यह है कि मवेशियों की बीमारी बढ़ रही है।
कोई ठोस सुधारात्मक पहल नहीं की गई
समय पर चिकित्सा नहीं मिलने से पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। समय-समय पर शिकायतों के बावजूद अबतक विभाग की ओर से कोई ठोस सुधारात्मक पहल नहीं की गई। लोगों का कहना है कि यदि तत्काल कार्रवाई नहीं हुई तो वे बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
इस अस्पताल के लिए अलग से चिकित्सक, दवाओं की नियमित आपूर्ति और उपकरणों की मरम्मत सुनिश्चित करने की जरूरत है।

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