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विरोध या समर्थन में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे मुखिया जी

लखीसराय । विधानसभा चुनाव में किस पार्टी या गठबंधन के प्रत्याशी का समर्थन किया जाए और किसका ि

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2020 07:31 PM (IST)Updated: Fri, 16 Oct 2020 07:31 PM (IST)
विरोध या समर्थन में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे मुखिया जी
विरोध या समर्थन में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे मुखिया जी

लखीसराय । विधानसभा चुनाव में किस पार्टी या गठबंधन के प्रत्याशी का समर्थन किया जाए और किसका विरोध, अपने समर्थकों के इस सवाल पर मुखिया जी चुप हैं। चुनावी मौसम में मौन रहना सिर्फ मुखिया की ही विवशता नहीं है। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के सभी प्रतिनिधियों का कमोवेश यही हाल है। इसके पीछे वजह यह है कि छह महीने बाद पंचायत चुनाव होना है। पंचायत प्रतिनिधियों को यह डर सता रहा है कि विधानसभा चुनाव में यदि किसी उम्मीदवार विशेष के समर्थन या विरोध में मुखर हुए तो कुछ वर्ग के मतदाताओं की भावनाओं को चोट पहुंच सकती है। ऐसे में पंचायत चुनाव के दौरान कहीं उनकी ही जमीन न खिसक जाए। इन हालातों में अधिकांश पंचायत प्रतिनिधि राजनीतिक दल की सभा में शामिल ही नहीं होना चाहते। जो प्रतिनिधि सभाओं में शामिल हो रहे, वे इसे राजनीतिक विवशता बता रहे हैं। जब कोई मतदाता सवाल दागता है तो यह कहकर बच निकलने कि कोशिश करते हैं कि मुखिया किसी दल का नहीं होता। किसी प्रत्याशी की ओर से निमंत्रण मिलता है तो जाना पड़ता है। आप जिस उम्मीदवार को चाहें उन्हीं को वोट दें। पंचायत चुनाव में मेरा ख्याल रखिएगा। यही स्थिति पंचायत समिति सदस्यों, जिला पार्षदों एवं वार्ड सदस्यों की भी है। पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तरों में पंचायत स्तर पर मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य एवं ग्राम कचहरी के सदस्य चुने जाते हैं। दूसरे स्तर पर पंचायत समिति (प्रखंड) के सदस्य और तीसरे स्तर पर जिला पार्षदों का चुनाव होता है। पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल मई में पूरा हो रहा है। ये सभी प्रतिनिधि इस चुनाव में अपनी जमीन मजबूत करने के प्रति सचेत दिख रहे हैं। इस बार भी पंचायत चुनाव नए आरक्षण रोस्टर से नहीं होना है। इसलिए पंचायत प्रतिनिधि अपनी सीट पर फिर से काबिज होने की जुगत में हैं। वे दूसरे को जिताने या हराने के लिए अभी मुखर होकर अपने लिए जोखिम नहीं उठाना चाह रहे। हां, यदि नए आरक्षण रोस्टर से पंचायत चुनाव होने वाले होते तो वे विस चुनाव में अपने चहेते उम्मीदवार के लिए उन प्रतिनिधियों ने अपनी ताकत लगा दी होती चुनाव लड़ने के विकल्प खत्म होने वाला होता। राजनीतिक दलों की बूथ कमेटियों में शामिल वार्ड सदस्य एवं ग्राम कचहरी पंच भी रिस्क लेने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।

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