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मां होती हैं जननी, उनके बिना जीवन नहीं

विश्व मां दिवस पर विशेष ---------------------- संवाद सहयोगी लखीसराय मां जननी होती है। हर

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 09:07 PM (IST)Updated: Sun, 12 May 2019 06:32 AM (IST)
मां होती हैं जननी, उनके बिना जीवन नहीं
मां होती हैं जननी, उनके बिना जीवन नहीं

विश्व मां दिवस पर विशेष

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---------------------- संवाद सहयोगी, लखीसराय : मां जननी होती है। हर मनुष्य के जीवन में इनसे बढ़कर कोई अन्य नहीं हो सकता। मां की आंचल के सामने दुनिया का हर सुख फीका नजर आता है। अच्छा पद हासिल करने के लिए मां की स्नेहमयी प्रेरणा एवं फटकार ने कई लोगों के जीवन को खुशियों से भर दिया है। मां की स्नेहमयी घुड़की को याद कर अभी भी लोगों का चेहरा खिल उठता है। हर व्यक्ति की सफलता में मां की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। मां की प्रेरणा से ही कई लोगों ने अहम पद पर काबिज होने का सौभाग्य प्राप्त किया है। 12 मई को मां दिवस है। इस दिन लोग अपनी मां को याद करते हैं। दैनिक जागरण ने भी जिले के अधिकारियों से उनकी मां का संस्मरण जानने का प्रयास किया है। अधिकारियों ने बचपन से लेकर ऊंचे ओहदे हासिल करने तक में अपनी मां की भूमिका की चर्चा खुलकर की है।

पदाधिकारियों की सफलता में मां की भूमिका

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फोटो - 11 एलएचके 9

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पिता के शिक्षक रहने के कारण मां प्रमिला देवी के कंधों पर ही घर का सारा काम एवं बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी थी। सारा घरेलू काम करते हुए भी मां मेरी पढ़ाई के प्रति सतर्क रहती थीं। मां हमेशा मुझे बड़ा अफसर बनने के लिए प्रोत्साहित करते रहती थीं। परीक्षा का परिणाम आने पर घर पहुंचते ही मां पूछ बैठती थीं कि फ‌र्स्ट क्लास से पास हुआ है या नहीं। फ‌र्स्ट क्लास से पास होने की सूचना सुनकर ही मां यह पूछ बैठती थीं कि क्लास में कौन सा स्थान तुम्हारा है। एक बार मां बीमार पड़ गई। सात वर्ष तक वह लगातार बीमार रही। इस दौरान घर एवं खेती-बारी का काम करते हुए मुझे पढ़ाई करनी पड़ती थी। मां बीमार रहते हुए भी मुझसे प्रतिदिन पढ़ाई के विषय में पूछती रहती थीं। मां यह हमेशा कहती थीं कि दुख के समय लोगों को धैर्य नहीं खोना चाहिए बल्कि और अधिक उत्साह से लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए। मां की इसी प्रेरणा से वे आज डीडीसी के इस पद पर हैं।

- विनय कुमार मंडल, उप विकास आयुक्त

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मनुष्य के जीवन में मां से बढ़कर कोई दूसरा नहीं हो सकता। मां की प्रेरणा से ही मैं अपने जीवन में कुछ पा सका हूं। मेरी मां अब मेरे बीच नहीं हैं परंतु उनके साथ बिताया गया एक-एक पल अभी भी मेरे दिल में उन दिनों की तरह ही ताजा बना हुआ है। मैं किसान परिवार से हूं। मां स्व. उर्मिला देवी घरेलू महिला होते हुए भी मेरी पढ़ाई के प्रति काफी जागरूक रहती थीं। परीक्षा का परिणाम निकलते ही मेरा स्थान जानने को मां उत्सुक हो जाती थीं। स्कूल से जब तक मैं घर नहीं पहुंच जाता था मां मेरी राह देखते रहती थीं। घर पहुंचते ही मां भूख लगी होगी कहते हुए जो कुछ भी घर में रहता खाने को दे देती थी। ममतामयी मां की प्रेरणा और उनके आशीर्वाद से ही मैं बिहार प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बन सका हूं। बचपन में मिली उनकी डांट और प्यार ने ही मुझे सही रास्ता चुनने का मार्ग प्रशस्त किया। आज भी मेरी मां मेरे समक्ष अलौकिक रूप में मौजूद हैं।

- मुरली प्रसाद सिंह, अनुमंडल पदाधिकारी

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मां शब्द सुनते ही अपनी मां का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूमने लगता है। बड़ा अफसर बनने की मां की प्रेरणा, गलती करने पर स्नेहमयी फटकार, खाना खिलाने की जिद आदि संस्मरण चलचित्र की भांति आंखों के सामने घूमने लगता है। मां हमेशा अपने क्लास में फ‌र्स्ट आने के लिए प्रेरित करती थीं। इसके अलावा वह सही रास्ते पर चलने एवं किसी भी परिस्थिति में रास्ते से नहीं भटकने के लिए कहते रहती थीं। मां की प्रेरणा से ही वे आज बिहार पुलिस सेवा के पदाधिकारी हैं। हालांकि बचपन से लेकर नौकरी प्राप्त करने तक में कई संकट मेरे सामने आए। पढ़ाई के समय में भी समस्याएं घेरती थी। लेकिन, मेरी मां अपने बच्चों के प्रति इतनी लग्नशील थीं कि वह हर परिस्थिति से लड़कर भी मेरे भविष्य निर्माण के बारे में सोचते रहती थी।

- मनीष कुमार, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी

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मेरी मां हेमलता श्रीवास्तव खुद मैट्रिक पास थी। इसके बावजूद वह मेरे सहित अपने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहीं। पिताजी डॉ. हरेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव सरकारी सेवा में रहने के कारण हमेशा घर से दूर रहे। मां के कंधों पर ही घर की पूरी जिम्मेदारी के अलावा तीनों बच्चों के शिक्षा की भी जिम्मेदारी थी। मां के अथक परिश्रम एवं प्रेरणा से इकलौता भाई बैंक अधिकारी एवं मैं भी अधिकारी बन पाईं। जबकि छोटी बहन एमए तक शिक्षा प्राप्त कर सफल गृहिणी हैं। मां हमेशा अच्छी नौकरी प्राप्त करने के लिए मुझे प्रेरित करते रहती थीं। मैट्रिक पास करने के बाद जब मैं हॉस्टल में रहने के लिए गईं तो मां को लगने लगा कि मैं उनसे दूर चली गई है। पहले मोबाइल एवं टेलीफोन की सुविधा नहीं थी। इसलिए बात भी नहीं हो पाती थी। चिट्ठी ही संपर्क का एक मात्र साधन था। हॉस्टल जाने के बाद मां का पत्र मिला। पत्र पढ़ते ही आंखें भर आई। पत्र में लिखा हुआ था कि खाना समय पर खाती है या नहीं। खाना बनाने, कपड़ा धोने आदि में काफी परेशानी होती होगी। इससे घबराना नहीं बल्कि मन लगाकर पढ़ाई कर अफसर बनने पर ध्यान लगाए रखना। मां की प्रेरणा से ही मैं अधिकारी बनने में सफल रही हूं।

- कुमारी अनुपमा, जिला प्रोग्राम पदाधिकारी, आइसीडीएस


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