चुनाव में नहीं होता था धन-बल का प्रयोग
अभियान ---------- मैं पहली बार सन 1962 में लोकसभा चुनाव में अपना मतदान किया था। इससे पहले सन 1
अभियान
----------
मैं पहली बार सन 1962 में लोकसभा चुनाव में अपना मतदान किया था। इससे पहले सन 1957 में विधान सभा चुनाव में मैं वोट देने लायक नहीं बन सका था। लेकिन गांव में वोटरों के साथ सक्रिय रहा। छल प्रपंच की राजनीति नहीं होती थी। कोई मारा-मारी नहीं थी। दो-चार प्रत्याशी मैदान में होते थे। भोपूं से चुनाव प्रचार होता था। हमलोगों के गांव में प्रत्याशी पैदल ही आते थे। पूरा गांव सक्रिय हो जाता था। बूथ तक जाने के लिए कोई असुरक्षा की भावना नहीं थी। कार्यानंद शर्मा इस क्षेत्र के बड़े किसान नेता थे। किसान उनके पीछे एक बोल पर चलने को तैयार हो जाते थे। जाति प्रथा और क्षेत्रवाद नहीं के बराबर थे। राजेश्वरी सिंह, बनारसी प्रसाद सिंह सरीखे नेताओं की भी अपनी पहचान थी। 70 के दशक के बाद डीपी यादव चर्चा में आए, मुंगेर के सांसद बने। 70 के दशक के पहले अलग-अलग वोट दिया जाता था। जितने प्रत्याशी मैदान में होते थे उनके लिए अलग-अलग बॉक्स होता था। मतदान केंद्र के अंदर जिस मतदाता को जिन्हें वोट करना होता था उनके बॉक्स में पर्चा गिरा दिया जाता था। प्रचार का तरीका भी अलग था। प्रत्याशी गांव-गांव, घर-घर घूमते थे और सभी लोगों से भेंट करते थे। कहीं से भी भेदभाव की भावना नहीं थी। आमसभा का आयोजन बड़े नेताओं के लिए होता था। उस समय हेलीकॉप्टर नहीं बल्कि जीप से नेता आते थे। अब सबकुछ बदल गया है। अब राजनीति नाम से लोग घृणा करने लगे हैं। उस समय बाहुबल तो था लेकिन धनबल नहीं था। समय के साथ सबकुछ बदला है। 80 के दशक के बाद धनबल का भी प्रयोग होने लगा।
- सुधीर मंडल, ग्राम-भिड़हा, सचिव बिहार पेंशनर समाज, सूर्यगढ़ा पूर्वी।