¨हदी सारे जहां में आंचल फैला दी है..
लखीसराय। स्थानीय नया बाजार धर्मशाला में ¨हदी दिवस पर शुक्रवार को जिला ¨हदी साहित्य सम्मेलन के
लखीसराय। स्थानीय नया बाजार धर्मशाला में ¨हदी दिवस पर शुक्रवार को जिला ¨हदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में ¨हदी मेरे आइने में विषय पर परिचर्चा एवं कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता राम बालक ¨सह ने की। इस अवसर पर उपस्थित लोगों ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व में ¨हदी की लोकप्रियता बढ़ी है। अमेरिका जैसे देश में भी ¨हदी सीखने पर जोर दिया जा रहा है। देश वासियों को अधिक-से-अधिक भाषा सीखना चाहिए परंतु सारा कार्य ¨हदी में ही करना चाहिए। इसके बाद उपस्थित कवियों ने स्वरचित कविता का सस्वर पाठ किया। सुखदेव मोदी ने ¨हदी सारे जहां में आंचल फैला दी है, अपनी सुमधुर तान से जग को लुभा रही है। राम बालक ¨सह ने ¨हदी ही अध्यात्म, सभ्यता, संस्कृति का संरक्षक है, तुलसी, सूर, रहीम, कबीर की वाणी ही उत्प्रेरक है। त्रिवेणी पासवान ने राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गीत, राज भाषा किसी भी राष्ट्र की पहचान है। सिद्धेश्वर प्रसाद ¨सह ने जन-जन की भाषा है ¨हदी, हर मस्तक पर है ये ¨बदी। कामेश्वर प्रसाद यादव ने ¨हदी ¨हदुस्तान के दिल में बसती है। जीवन पासवान ने ¨हद देश की ¨हदी भाषा सब भाषाओं को आदर भाव सिखाती है, बन सितारा भटके राही को उजाला कर राह दिखाती है। जिला ¨हदी साहित्य सम्मेलन के सचिव राजेश्वरी प्रसाद ¨सह ने मानवता की रक्षा की खातिर ¨हदी है तैयार। रामचंद्र पासवान ने ¨हद देश में ¨हदी की ¨बदी भारत जननी के भाल पर सदा चमके। राजेंद्र कंचन ने ¨हदी तुम रहीम की रवानी हो, ¨हदी तुम कबीर की उल्टी वाणी हो, ¨हदी तुम सूर सागर की कहानी हो, ¨हदी तुम तुलसी रामायण की निशानी हो। भारती देवी ने भारत में हमेशा प्रतिष्ठित होती रहेगी ¨हदी, दुष्प्रचारक ¨हदी के भागेंगे प्रतिद्वंद्वी। भोला पंडित ने बोल रहल है बच्चा-बच्चा पूरे ¨हदुस्तान के, ¨हदी पढ़वय लिखवय ¨हदी बोलव सीना तान के। गौरव कुमार ने अब बोल तू कुछ अपनी ही जुबान में, रो रही है तेरी अवाम ¨हदी के शहर ¨हदुस्तान में। रोहित कुमार ने ¨हदी हमारी राज बंधु, ¨हदी हमारी जान। राजेंद्र राज ने जंगल की चिट्ठी आई है, पर्वत की चिट्ठी आई है, दर्द में डूब रही दुनिया की दर्द भरी चिट्ठी आई है। दया शंकर ¨सह बेधड़क ने थोड़ी ¨जदगी है तो थोड़ा ही प्यास हो, खोटी नसीब देख ना इतना उदास हो कविता का पाठ किया। परिचर्चा में कवियों के अलावा डॉ. सिद्धेश्वर महतो ने भी भाग लिया।