नवरात्र के सातवें दिन की गई मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना
किशनगंज। नवरात्र के सातवें दिन शुक्रवार को महासप्तमी के दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरुप मां क
किशनगंज। नवरात्र के सातवें दिन शुक्रवार को महासप्तमी के दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरुप मां कालरात्रि की पूजा अर्चना मंदिर और घरों में विधि-विधान पूर्वक किए गए। शक्ति स्वरूप मां कालरात्रि शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाली हैं। मां कालरात्रि वह देवी है जिन्होंने मधु कैटभ नामक असुर राक्षक का वध किया था। ऐसी मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। साथ ही इनकी पूजा करने वाले भक्तों को भूत, प्रेत और बुरी शक्ति का भय नही सताता है।
यह जानकारी शुक्रवार को पड़ित लीला नंद ने दी। उन्होंने बताया कि नवरात्रि में सप्तमी तिथि तिथि का विशेष महत्व रहता है। इस दिन से पूजा पंडाल में भक्तों के लिए देवी मां के दर्शन के लिए द्वार खुल गए। मां कालरात्रि की पूजा शुरु करने से पूर्व मां कालरात्रि के परिवार के सदस्यों, नवग्रहों और दशदिक्पाल को प्रार्थना कर आमंत्रित किया गया। सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवताओं की पूजा की गई। हाथों में फूल लेकर मंत्र का ध्यान किया गया। इन मंत्र में या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रुपेण संस्थिता- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: का जाप किया गया। पूजा के उपरांत मां को गुड़ का भोग लगाया गया। तंत्र साधना के लिए सप्तमी तिथि का बड़ा महत्व है। इसलिस सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात भी माना गया है। इस दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा किए। इस दिन मां की आंखें खुल जाती है। कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे रहते हैं। वे महा सप्तमी के दिन सहस्त्रासार चक्र का भेदन करने में सफल होते हैं।
शास्त्रों में मां कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है। इनके त्रिनेत्र बह्नमांड की तरह विशाल होते हैं। इनआंखों से बिजली की तरह किरणें प्रज्वलित होती है। गले में विद्युत की चमकवाली माला है। इनकी नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाई ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान और नीचे की भुजा से अभय का आर्शीवाद प्रदान करती है। बाए ओर की दोनो भुजाओं में तलवार और खडग धारण की हुई है।