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थैलेरियोसिस रोग को लेकर पशुपालकों को किया जा रहा सचेत

फोटो- 21 केएसएन 04 - बीमारी का लक्षण दिखते ही कराएं पशुओं का उपचार संवाद सहयोगी कि

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 10:59 PM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 11:12 PM (IST)
थैलेरियोसिस रोग को लेकर पशुपालकों को किया जा रहा सचेत
थैलेरियोसिस रोग को लेकर पशुपालकों को किया जा रहा सचेत

फोटो- 21 केएसएन 04

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- बीमारी का लक्षण दिखते ही कराएं पशुओं का उपचार

संवाद सहयोगी, किशनगंज : बरसात में पशुओं में कई प्रकार की बीमारी होने का खतरा बना रहता है। कई बीमारियां ऐसी होती हैं कि उनके लक्षण विलंब से दिखाई देते हैं। इसलिए पशुपालकों को कोशिश करनी चाहिए कि किसी भी प्रकार के बीमारी के लक्षण दिखे तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लें।

खासकर पशुओं में थैलेरियोसिस नामक बीमारी बारिश के मौसम में फैलने का खतरा बना रहता है। इस बीमारी के शिकार अधिकतर पशु सितंबर से लेकर अक्टूबर माह के बीच में होते हैं। इस बीमारी से ग्रसित पशुओं का सही समय पर ईलाज नहीं किया गया तो पशुओं की मौत भी हो सकती है।

यह जानकारी देते हुए डेयरी फिल्ड ऑफिसर एस. एन. सिंह ने बताया कि थैलेरियोसिस नामक बीमारी चमोकन द्वारा फैलता है। इस बीमारी से ग्रसित पशुओं के गर्दन के अगले हिस्से में गिल्टी दिखायी देने लगती है। साथ ही मूत्र का रंग भी पीला होने के साथ बुखार भी तेज हो जाता है। गाय की तुलना में बछड़े इस बीमारी से अधिक संक्रमित होते हैं। इस बीमारी से ग्रसित पशु मरने के एक दिन पहले तक अच्छी तरह चारा खाती रहती है। इस बीमारी से ग्रसित पशुओं में मृत्यु दर की संभवना 70-80 फीसद तक बनी रहती है। उपचार के रूप में वुपारमाक्वीन 2.5 मिग्रा प्रति किग्रा शरीर भार के अनुसार सूई रोगग्रस्त पशुओं को लगाना चाहिए। अेट्रासाक्लीन या आक्सीअेट्रासाईक्लीन आदि का प्रयोग भी लाभकर होता है। इसके अलावा ज्वरनाशक दवा मेलौक्सीकेम पारासीटामोल का प्रयोग उपयोगी होता है।


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