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भारत की 'हिंदी' बहुत महंगी; नेपाल में 'अंग्रेजी' सस्ती, पढ़ने के लिए रोज सीमा पार जाते हैं 50 से ज्यादा बच्चे

नेपाल से सटे भारतीय क्षेत्र से प्रतिदिन कक्षा एक से 12वीं तक के 50 से अधिक विद्यार्थी नेपाल के स्कूल में पढ़ने के लिए जाते हैं। नेपाल से रोज स्कूल बसें भारतीय क्षेत्र में आती हैं। बच्चों को हिंदी की पढ़ाई घर में ही करनी होती है।

By Amitesh SonuEdited By: Yogesh SahuPublished: Wed, 18 Jan 2023 04:57 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jan 2023 04:57 PM (IST)
भारत की 'हिंदी' बहुत महंगी; नेपाल में 'अंग्रेजी' सस्ती, पढ़ने के लिए रोज सीमा पार जाते हैं 50 से ज्यादा बच्चे
भारत की 'हिंदी' महंगी; नेपाल में 'अंग्रेजी' सस्ती, पढ़ने के लिए रोज सीमा पार जाते हैं 50 से ज्यादा बच्चे

शैलेश, किशनगंज। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को दरकिनार कर कम फीस में अंग्रेजी मीडियम में बेहतर पढ़ाई करने सीमावर्ती क्षेत्र के बच्चे नेपाल के स्कूल जाते हैं। भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के आसपास निवास करने वाले छात्र और अभिभावकों में नेपाल के स्कूल के प्रति आकर्षण है।

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इसी कारण भारतीय क्षेत्र से करीब पांच किमी दूर नेपाल स्थित सिद्धार्थ शिशु सदन (भद्रपुर) की स्कूल बस प्रतिदिन आती है और भारतीय सीमा से सटे गलगलिया और बंगाल के डेंगूजोत इलाके के बच्चे स्कूली पढ़ाई करने नेपाल जाते हैं। प्रतिदिन करीब 50 से अधिक बच्चे नेपाल की स्कूल में पढ़ाई करने जाते हैंं।

नेपाल के स्कूलों में नहीं लगता नामांकन शुल्क

नेपाल से सटे भारत के किशनगंज के ठाकुरगंज प्रखंड में बेहतर सीबीएसई की अच्छी स्कूल होने के बावजूद अभिभावक अपने छात्र को नेपाल भेजना अधिक पसंद करते हैं। अभिभावकों के अनुसार नेपाल के स्कूलों में नामांकन शुल्क माफ किया जाता है और मासिक फीस भी भारत के स्कूल के मुकाबले लगभग आधी पड़ती है।

भारत में जहां स्कूल फीस दो हजार रुपये के करीब है। वहीं, नेपाल में यह फीस करीब 1200 रुपये के आसपास लगती है। अभिभावक सूरज साह, अनिल यादव सहित अन्य अभिभावकों ने बताया कि नेपाल के स्कूल में सीबीएसई बोर्ड की तरह एनईबी (नेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड) से पढ़ाई कराई जाती है।

अंग्रेजी में बात करते हैं बच्चे

बच्चों को स्कूल में अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई कराई जाती है। अंग्रेजी भाषा में वहां बच्चे आपस में बातचीत भी करते हैं। कम फीस होने के कारण हिंदी भाषा पर ध्यान नहीं देकर वहां के स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजा जाता है। हिंदी भाषा घर में ही पढ़ा दी जाती है। आज के दौर में अंग्रेजी भाषा का अधिक महत्व बढ़ना भी इसकी एक वजह है। 

भारतीय मुद्रा मजबूत होने के कारण लगता है कम शुल्क

नेपाल के स्कूल में कम फीस लगने की मुख्य वजह नेपाली मुद्रा की तुलना में रुपये का मजबूत होना भी है। 0.62 रुपये के बराबर एक नेपाली रुपया होता है। किशनगंज के निजी स्कूलों में नामांकन शुल्क पांच से 10 हजार तक है। वहां, नहीं के बराबर नामांकन शुल्क लगता है। सिर्फ कुछ निर्धारित शुल्क ही लिया जाता है।

इसके अलावा भारत में जहां हर महीने लगभग दो हजार रुपये फीस में देने होते हैं। वहीं, नेपाल के स्कूल में महीने की फीस 1200 रुपये तक है। वहीं, कक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने पर छात्रवृत्ति भी मिलती है। एक परिवार के दो बच्चों के नामांकन के बाद तीसरे बच्चे से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

भारत में बिहार बोर्ड और सीबीएसई में होती ही परेशानी

नेपाल बोर्ड से पढ़े छात्रों के बिहार बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड में नामांकन में काफी परेशानी होती है। नेपाल बोर्ड से प्रमाण पत्र लिए छात्रों को बिहार बोर्ड में नामांकन के लिए बोर्ड से स्वीकृति लेनी होती है। वहीं, सीबीएसई स्कूल के प्रबंधन ने बताया कि सीबीएसई बोर्ड के लिए भी पटना से आदेश लेने के बाद नामांकन हो पाएगा।

भारत क्षेत्र से 50 से अधिक बच्चे प्रतिदिन पढ़ाई करने आते हैं। उन बच्चों के लिए नामांकन एवं मासिक फीस के साथ अन्य विशेष सुविधाएं भी दी जाती हैं। हिंदी की पढ़ाई भी ऐच्छिक विषय के रूप में जल्द शुरू की जाएगी। - श्याम देवन, सिद्धार्थ शिशु निकेतन स्कूल (भद्रपुर), प्रिंसिपल

बिहार में नेपाल बोर्ड के प्रामण-पत्र पर नामांकन का प्रावधान नहीं है। विभाग से निर्देश प्राप्त कर ही इसमें कोई पहल की जा सकती है। - सुभाष कुमार गुप्ता, जिला शिक्षा पदाधिकारी, किशनगंज


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