जब 1955 में निर्विरोध चुने गए थे आचार्य कृपलानी
किशनगंज। याद कीजिए 1952 का पहला आम चुनाव जब भागलपुर-पूर्णिया एकीकृत हुआ करता था। उस व
किशनगंज। याद कीजिए, 1952 का पहला आम चुनाव जब भागलपुर-पूर्णिया एकीकृत हुआ करता था। उस वक्त भागलपुर में सामान्य और हरिजन दो अलग-अलग सीटें थी। 1952 के चुनाव में सामान्य सीट से अनूपलाल मेहता को जीत मिली थी और हरिजन सीट से किराई मुसहर को जीत मिली थी। मधेपुरा भी उस वक्त भागलपुर के अधीन आता था। अनूपलाल मेहता के निधन के बाद 1955 के उपचुनाव में आचार्य जेबी कृपलानी सामान्य सीट से निर्विरोध चुने गए। बिहार गजेटियर के इसका जिक्र है। गजेटियर के अनुसार दो साल बाद 1957 के आमचुनाव में इसी सीट से ललित नारायण मिश्र चुने गए और हरिजन सीट से भोली सरदार सांसद बने। 52 और 57 में इस सीट पर सामान्य व हरिजन दो सांसद चुने गए।
कोसी-सीमांचल के मतदाताओं ने बाहरी व अपने का कभी भेदभाव नहीं किया। बिहार के विभिन्न जिलों से आकर चुनाव लड़ने वालों को तो हाथों हाथ लिया ही दूसरे प्रदेश से आने वाले कद्दावरों को भी दिल से लगाया। इतिहास के पन्नों को पलटें तो हिमालय का तराई क्षेत्र कहा जाने वाले इस इलाके ने सबको मौका दिया। किसी को एकबार तो किसी को दुबारा या फिर किसी को बार-बार। हर साल कोसी, महानंदा, गंगा, मेंची, कनकई समेत दर्जनों नदियों के उफान में खुद उजड़ कर बसने वाले इस इलाके के लोगों की जीवटता का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है कि लाख दर्द सह कर भी अपनी होंठों पर मुस्कान लिए मेहमान का दिल खोलकर स्वागत किया। आचार्य कृपलानी से लेकर शरद यादव तक को अपना प्रतिनिधि चुना।
समाजवादी आंदोलन ने दिया दूसरे प्रदेश के नेताओं को मौका -
1984 के बाद कोसी-सीमांचल में समाजवाद का उदय हुआ। समाजवादी आंदोलन का यही वह दौर था जब इन इलाकों में जहां एक तरफ कांग्रेस धाराशायी हो गई वहीं समाजवादी कुनबे का विस्तार हुआ। यहीं से शुरू हुआ बिहार के अन्य जिलों व दूसरे प्रदेशों के दिग्गजों का कोसी-सीमांचल से चुनावी हुंकार भरने का सिलसिला। 1984 के आमचुनाव के बाद ही समाजवादी आंदोलन ने दूसरे प्रदेश से आने वाले नेताओं को संसद पहुंचने का रास्ता साफ किया। सर्वप्रथम 1985 के उपचुनाव में किशनगंज लोकसभा सीट से पूर्व राजनयिक रह चुके सैयद शहाबुद्ददीन सांसद चुने गए। जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सैयद शहाबुद्दीन चुनाव जीते थे। इसके बाद 89 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर एमजे अकबर को जीत मिली। फिर 91 के चुनाव में सैयद शहाबुद्दीन सांसद चुने गए। यानी किशनगंज की जनता ने सैयद शहाबुद्दीन को दो बार व एमजे अकबर को एक बार सांसद चुना। इसी तरह कटिहार से 1991 में जनता दल के टिकट पर मो. युनूस सलीम सांसद चुने गए। उन्हें दुबारा मौका नहीं मिल पाया। इसी साल मधेपुरा में चुनाव लड़ने आए मध्यप्रदेश वाले शरद यादव। जनता दल के टिकट पर वे आनंद मोहन को करारी मात देते हुए संसद पहुंचे। तब से लेकर अब तक वे चार बार 91, 96,99 व 2009 में मधेपुरा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 99 में लालू यादव को पटखनी देने में शरद यादव कामयाब रहे। जबकि लालू यादव के हाथों शरद यादव को 98 और 2004 में यानी दो बार करारी हार मिली है। 2014 में पप्पू यादव भी उन्हीं शिकस्त दे चुके हैं। कुल मिलाकर शरद यादव मधेपुरा से आठवीं बार चुनावी मैदान में हैं।