हर क्षेत्र में महिलाएं भर रहीं उड़ान
किशनगंज राज्य के सबसे सुदूरवर्ती जिला कहा जाने वाला किशनगंज अब अतीत के पन्नों को पलटते ह
किशनगंज : राज्य के सबसे सुदूरवर्ती जिला कहा जाने वाला किशनगंज अब अतीत के पन्नों को पलटते हुए सुनहरे भविष्य की इबारत लिख रहा है। कभी देश के सबसे पिछड़े इलाके में शुमार में रहने वाला यह जिला अब सफलता की नई कहानी लिख रहा है। इसमें बड़ी भागीदारी निभा रहीं हैं आधी आबादी। किशनगंज जिले की महिलाओं ने अपने दम खम के बदौलत नारी सशक्तीकरण को एक नई दिशा देने में कामयाब हुई हैं। चाहे बात खेती किसानी की हो या फिर शिक्षा का क्षेत्र। बात खेलकूद की हो या फिर स्वरोजगार कर खुद को साबित करने की। योग के साथ महिलाओं को निरोगी काया बनाने का प्रयास हो या फिर अदालत में महिलाओं को कानूनी सहायता देकर न्याय दिलाने की। तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हर कदम सफलता की ओर बढ़ रहीं हैं महिलाएं।
------------------------स्वस्थ समाज के निर्माण को ले कविता लगा रहीं योग शिविर
फोटो- 07 केएसएन 52,
समाज में खुशहाली लाने के लिए जरूरी है कि इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें। इसके लिए स्वस्थ पर्यावरण के साथ स्वच्छ माहौल बेहद जरूरी माना जाता है। अक्सर देखा जाता है कि गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार के लोग अधिक बीमार पड़ते हैं। लेकिन उचित चिकित्सा के अभाव में बीमारियां जकड़ लेती है। इसके लिए योग एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जिसके निरंतर अभ्यास से इंसान स्वस्थ जीवन के साथ स्वस्थ माहौल व मानसिक विकास के साथ आगे बढ़ सकते हैं।
इसी को अपना उद्देश्य बताते हुए डुमरिया निवासी कविता साहा बताती हैं कि वे पड़ोसी राज्य बंगाल से मैट्रिक, इंटर और स्नातक की पढ़ाई पूरी की हैं। इंटरमीडिएट की पढ़ाई करते समय अक्सर कॉलेज जाने के लिए अपने सहेली के घर जाया करती थी। उनके माता-पिता हमेशा बीमारी की समस्या से त्रस्त रहते थे। इलाज के बावजूद उन्हें बीमारियों से निजात नही मिल रही थी। जिस कारण परेशानियां अलग थी और उपर से रुपये-पैसे भी खर्च हो रहे थे। लेकिन सुधार नहीं के बराबर हो रहा था। उस समय इंटर की पढ़ाई के साथ योग शिक्षा भी ले रही थी। उसी समय उन्होंने संकल्प लिया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद निश्शुल्क योग शिविर लगा कर लोगों को योग करना सिखाएंगी। लगभग आठ वर्ष से निश्शुल्क योग शिविर लगा कर पुरूष-महिलाओं को योग करने के साथ इसके फायदों के बारे में भी जानकारी दे रहीं हैं। अब तक सैकड़ों शिविर लगाकर लोगों को योग कराने के साथ इसकी विशेषता से अवगत कराती रही हूं। योग के लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि मुख्य हैं। पेशे से शिक्षिका कविता साहा कहती हैं कि अपने जीवन यापन के लिए शिक्षण कार्य से जुड़ी हूं। लेकिन समाज सेवा के लिए लोगों को योग सिखाती हैं। लोगों को सामान्य रूप से स्वास्तिकासन, गोमुखासन, गोरक्षासन, अर्द्धमत्येन्द्रासन, योग मुद्रासन, उदाराकर्षण, शंखासन, सर्वागासन, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, कपालभाती और भ्रामरी प्राणायाम कराती हूं। निशुल्क योग शिविर के संचालन में आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन इस कठिनाई के बावजूद भी योग शिविर लगाने कार्य अनवरत चलता रहता है।
------------------------कानूनी सलाह के साथ अधिकार दिलाने में लगी हैं मुमताज
फोटो- 07 केएसएन 51,
लगभग 13 वर्षों से वकालत कर रहीं मुमताज जर्रीन महिलाओं को उनका हक व अधिकार दिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं। समाजिक स्तर से लेकर कानूनी स्तर तक महिलाओं के अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं। इसके लिए वे किसी प्रकार का फीस नहीं लेतीं हैं बल्कि निश्शुल्क सेवा करती हैं। खासकर ग्रामीण परिवेश की महिलाओं के हक के लिए हमेशा बढ़ चढ़कर हिस्सा लेतीं रही हैं।
इस मुद्दे पर बेवाक कहती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का मतलब महिलाओं की आर्थिक, राजनीति और सामाजिक उपलब्धियों का उत्सव मनाने का दिन होता है। इसके लिए जरूरी है कि हमें महिलाओं के प्रति अपनी रूढि़वादी सोच को बदलनी होगी। लड़कियों को उच्च शिक्षा दिया जाना चाहिए ताकि बेटियां विभिन्न क्षेत्रों में न सिर्फ अपना कॅरियर बनाए बल्कि अपनी प्रतिभा का भी परचम लहराए। मुमताज बताती हैं कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का थीम बैलेंस फॉर बेटर गया है। यह थीम महिलाओं को अपनी लड़ाई स्वयं लड़ने के लिए प्रोत्साहित करतीं हैं।
पेशे से अधिवक्ता मुमताज जर्रीन ने बताया कि मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने के बावजूद पढ़ाई को महत्व देती रहीं। ग्रामीण क्षेत्र में रहने के बाद भी पटना से स्नातक व बीएमपी लॉ कालेज पूर्णिया से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। कानून की डिग्री मिलने के बाद 2005 से महिलाओं को सामाजिक और कानूनी तौर पर न्याय दिलाने के लिए वे प्रयत्नशील हैं। वे बताती हैं कि महिला सशक्तिकरण की राह चलकर महिलाओं को उन्हें अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति भी जागरूक कर रहीं हैं। महिलाओं को कानूनी सलाह और कोर्ट में न्याय दिलाने के अलावा आर्थिक, सामाजिक और कानूनी रूप से मदद कर रहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं को कानूनी रूप से सहायता पहुंचाने और उनके विवादों के निपटारे के लिए न्याय मित्र का भी काम कर रही हूं।
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महिलाओं पर हो अत्याचार से निजात दिलाना मेरा लक्ष्य : पुष्पलता कुमारी
फोटो 07 केएसएन 59
महिलाओं पर हो रहे जुल्म व अत्याचार से उन्हें निजात दिलाना और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने को अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बता रहीं महिला थानाध्यक्ष पुष्पलता कुमारी बेहद शांत स्वभाव की हैं। लेकिन वे कहती हैं कि मैंने अपने इसी लक्ष्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पुलिस सेवा में अपना योगदान दिया है। महिलाओं को न्याय दिलाने के साथ-साथ उन्हें स्वावलंबी बनाना उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। 2009 में पुलिस सेवा में योगदान देने के बाद से उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को न केवल न्याय दिलाया बल्कि परिवार परामर्श केंद्र के माध्यम से सैकडों परिवारों को उजड़ने से बचाया है। पिता गंगा प्रसाद ठाकुर के निधन के बाद मां शोभा रानी, भाई मनोज कुमार व पति विनोद कुमार ठाकुर ने हर कदम उनका साथ दिया। उनकी प्रेरणा व हौसला आफजाई से ही आज पुष्पलता इस मुकाम तक पहुंच सकीं। कटिहार जिले के सोनैली निवासी पुष्पलता ने सोनैली हाईस्कूल से मैट्रिक और कटिहार से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की है। पिता के सड़क दुर्घटना में निधन के बाद जब वह पूरी तरह से टूट गई थी तो मां और भाई ने उसकी हौसला दिया। पति और ससुराल वालों की प्रेरणा से उन्होंने 2009 में पुलिस सेवा में योगदान दिया। दो बार पूर्णिया सहित अररिया महिला थानाध्यक्ष की कमान संभालने के बाद पुष्पलता ने विगत दिनों ही किशनगंज महिला थानाध्यक्ष की कमान संभाली है। योगदान के बाद से वह अपने कर्तव्यों के निर्वहन में जुटी हैं।
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ताइक्वांडो में राज्य का प्रतिनिधित्व कर शहाबत ने बढ़ाया जिले का मान
फोटो 07 केएसएन 68
साधारण किसान परिवार से आने वाली शहाबत बानो जिले का नाम रौशन कर रही है। महज चार साल की उम्र आम से खास बन चुकी शहाबत तालीम व तरक्की में पिछड़े किशनगंज जिले का राज्य स्तर पर प्रतिनिधित्व कर अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई है। शहाबत ने खेल के मैदान में कदम रख मिसाल कायम की। आज ताइक्वांडो खेल में वह सूबे की पहचान बन गई हैं। चार सालों में उसने एक कदम भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पदकों से झोलियां भरते-भरते वह किशनगंज से केरल तक पहुंच गई। फिलवक्त अंतर्राष्ट्रीय पटल से सिर्फ एक कदम दूर वह केरल में नेशनल गेम में बिहार की अगुवाई कर चुकी हैं। गत दो वर्षाें में राज्यस्तरीय खेलों में गोल्ड मेडल हासिल कर उसने अपनी यह जगह कायम कीं है।
चार साल के सफर की चर्चा कर शहर के लाईन खानकाह निवासी शहाबत खुद भी हौसले से लबरेज हो जाती है। वह कहती है कि यह सब सोचना और कर पाना आसान नहीं रहा। वह बताती है कि वर्ष 2014 की बात है। वह खगड़ा स्थित कस्तूरबा स्कूल में आठवीं में पढ़ती थी। स्कूल में सबला योजना को लेकर कार्यक्रम हुआ और तभी ताइक्वांडों के बारे में सुना। इसी के बाद से ताइक्वांडो खेल का इरादा कर लिया। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं। शायद इसीलिए पिता हैदर इमाम को आसानी से राजी कर लिया। इसके बाद नेशनल स्कूल में ट्रेनर सादिक अख्तर की निगरानी में उसकी ट्रेनिग शुरू हुई। कड़ी मेहनत के बाद वर्ष 2016 में कटिहार में बिहार ताइक्वांडों संघ की प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीती तो उम्मीद दोगुनी हो गई।
2018 में ओपेन स्टेट ताइक्वांडो पटना में गोल्ड मेडल जीतने के बाद वह झूम उठी और इस जीत से उसके परिवार में भी खुशियां छा गई। 2017 में गोपालगंज में एसजीएफआई में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इस जीत ने नेशनल गेम खेलने का रास्ता खोल दिया। अभी शहाबत केरल के कन्नूर में 63 वें राष्ट्रीय विद्यालय ताइक्वांडों प्रतियोगिता में बिहार के तरफ से खेल चुकी है।