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मशरूम की खेती ने दिलाई पहचान, एफपीओ की निदेशक बनी शामोली

किशनगंज। महज दो सालों में घर की दहलीज लांघकर शामोली गांव की महिलाओं के लिए ब्रांड एम्बेस्डर बन गई है

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Jan 2018 02:57 AM (IST)Updated: Tue, 09 Jan 2018 02:57 AM (IST)
मशरूम की खेती ने दिलाई पहचान, एफपीओ की निदेशक बनी शामोली
मशरूम की खेती ने दिलाई पहचान, एफपीओ की निदेशक बनी शामोली

किशनगंज। महज दो सालों में घर की दहलीज लांघकर शामोली गांव की महिलाओं के लिए ब्रांड एम्बेस्डर बन गई है। ठाकुरगंज के बैरागीझाड़ निवासी शामोली न सिर्फ मशरुम उत्पादन कर महिलाओं को इससे जोड़ी है बल्कि एफपीओ(फार्मर प्रोड्युसर आर्गेनाइजेशन) के निदेशक पद को सुशोभित कर रही है। किसान परिवार से ताल्लुक रखनेवाली इस महिला ने दो साल पूर्व एनजीओ से जुड़कर अपने किस्मत की तकदीर लिखने के लिए कदम बढ़ा दिए थे। इसके द्वारा वह गांव की महिलाओं से मिलकर पैसे बचत कर बैंक में जमा करने का काम करती थी। एक साल पूर्व शामोली कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़कर मशरुम उत्पादन के क्षेत्र में काम करने लगी। इसमें गांव की महिलाओं को साथ लेकर समूह में मशरुम उत्पादन करना शुरु किया। महिलाओं के काम को देखते वहां एफपीओ(फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन) संस्था बनाया गया। जिसमें शामोली निदेशक के रुप में काम कर रही है। इस संस्था से जुड़कर फिलहाल 25 महिलाएं मशरुम का उत्पादन कर आर्थिक रुप से सबल बन रही है। पति विनोद कुमार ¨सह पेशे से किसान हैं। इनके पास तीन एकड़ में चाय बगान भी है।

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ठाकुरगंज का मशरुम जाता बंगाल के सिलीगुड़ी

ठाकुरगंज की महिलाओं द्वारा उत्पादित मशरुम को बंगाल के सिलीगुड़ी भेजा जाता है। शामोली की मानें तो उत्पादित मशरुम को सबसे पहले उर्मिला मशरुम कंपनी के नाम से बनी संस्था में जमा किया जाता है। वहां से 60 रुपए किलो की दर से सिलीगुड़ी के व्यापारी माल को ले जाते हैं। इसमें महिलाओं को 2 रुपए प्रति किलो कमीशन मिलता है। महिलाएं महीना में 60 से 70 किलो मशरुम एक बार में जमा करती है। एक मशरुम के छते से तीन राउंड मशरुम तैयार किया जाता है। किसानों से घूम घूम कर मशरुम को जमा करना व उन्हें पैसे दिलवाने का काम करती है।

किसानों को लोन भी उपलब्ध करवाया जाता है

शामोली बताती है कि यहां एफपीओ संस्था गठन किया गया। जिसमें किसानों को भी शेयर होल्डर बनाया गया। उनका मुख्य काम किसानों को संस्था से जोड़कर उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाना है। इस कंपनी में कर्मी भी कार्यरत हैं। इससे जुड़नेवाले किसान को एक हजार रुपए जमा करना पड़ता है। जिसमें एक प्रतिशत कमीशन किसानों के खाते में जमा हो जाता है। वहीं दो प्रतिशत निदेशक के खाते में जाता है। इसके अलावा जमा पैसे से जरुरतमंद किसानों को लोन भी दिया जाता है। संस्था का हर साल ऑडिट भी होता है।

वैक्सिनेटर के रुप में भी काम कर रही शामोली

टीएसपी(जनजातीय परियोजना) के तहत बैरागीझाड़ गांव का चयन किया गया। इसमें कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बकरी पालन, गाय पालन, किचन गार्डेन, दलहन उत्पादन सहित कृत्रिम गर्भाधान, मवेशियों में टीकाकरण के लिए प्रेरित किया जाता है। इसी के तहत शामोली को इसकी जिम्मेदारी दी गई। कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक डा. रत्नेश चौधरी बताते हैं कि शामोली की कार्यकुशलता को देखते इन्हें बकरी, गाय, भैंस सहित अन्य मवेशियों के टीकाकरण का भी प्रशिक्षण उनके द्वारा दिया गया है। वह खुद जरुरत पड़ने पर गांव में मवेशियों का टीकाकरण भी कर रही है।


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