टीएसपी परियोजना से जुड़े 900 आदिवासी परिवार
किशनगंज। बाजार में दिन प्रतिदिन सब्जियों की कीमत में बढ़ोतरी होती रहती है। जिस वजह से अधि
किशनगंज। बाजार में दिन प्रतिदिन सब्जियों की कीमत में बढ़ोतरी होती रहती है। जिस वजह से अधिकतर लोग जरूरत के अनुसार सब्जियों का क्रय करने में असक्षम रहते हैं। अक्सर पाया जाता है कि बाजार-हाट में मिलने वाले सब्जियों के उत्पादन में रासायनिक खाद का अधिक किया जाता है। ऐसे सब्जियों के उपयोग स्वास्थ्य के लिए अक्सर हानिकारक ही साबित हुआ है। जैविक तकनीक से उत्पादित किए सब्जियां बाजार में उपलब्ध हो और कीमत भी स्थिर रहे। साथ ही आदिवासी महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध हो जाए। इस उद्देश्य से किचन गार्डेन आदिवासी महिलाओं के आर्थिक जीवन में व्यापक परिवर्तन ला सकता है। इस गार्डेन के तहत आदिवासी महिलाएं कम जमीन पर वैज्ञानिक तकनीक के माध्यम से ताजा और शुद्ध सब्जियों का उत्पादन कर रही हैं। अब तक नौ गांव के 900 आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें किचन गार्डेन से जोड़ा गया है।
आदिवासी महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने के लिए टीएसपी परियोजना के माध्यम से किचन गार्डेन चलाया जा रहा है। फिलहाल जिला के कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आदिवासी बाहुल्य नौ गांव में किचन गार्डेन के माध्यम से इनके जीवन को संवारने का प्रयास निरंतर जारी है। केंद्र द्वारा संचालित ट्राइबल सब प्लान (टीएसपी) के अंतर्गत आदिवासी महिलाओं को किचन गार्डेन द्वारा सब्जी उत्पादन करने का प्रशिक्षण भी समय समय पर दिया गया है। अब महिलाएं सब्जी उत्पादन कर अपने घर में उपयोग करने के साथ बाजार में भी सब्जियां बेच कर आमदनी बढ़ाने में सक्षम भी होने लगी हैं। महिलाएं कुशलता पूर्वक टीएसपी योजना का लाभ उठाने के साथ अन्य महिलाओं को इससे जोड़ने में लगी हैं। प्रशिक्षण के दौरान इस बात पर विशेष जोर दिया जाता है कि महिलाएं अपने अगल बगल के खाली पड़े जमीन पर टमाटर, बैंगन, भिडी, करेला, साग और पालक सहित कई अन्य सब्जियों का उत्पादन कर बाजार में बेच सकती हैं। सबसे अहम बात यह है कि किचन गार्डेन में जैविक खाद के प्रयोग पर बल दिया जाता है। जिससे कि सब्जियों में गुणवत्तापूर्ण पौष्टिकता बनी रहे। इसके लिए बदलते मौसम को देखते हुए किचन गार्डेन कीट भी निशुल्क देने की व्यवस्था है।
टीएसपी योजना के संचालन के लिए दो प्रखंड चयनित हैं। इनमें ठाकुरगंज और पोठिया प्रखंड को शामिल किया गया है। इन दोनों प्रखंड के अंतर्गत कुल नौ गांव में सफलतापूर्वक इस योजना को चलाया जा रहा है। इनमें पनासी, सारोगोड़ा, सखुआडाली, मिर्जापुर, बेसरबाटी, पथरिया, हुलहुली, कुकुरबाटी और महसूल शामिल है। सभी गांव के एक सौ आदिवासी परिवारों के बीच किचेन गार्डेन कीट दिया जा चुका है। इसके अलावा किचेन गार्डेन से पूर्व खेतों को वैज्ञानिक तकनीक से तैयार करवाए जाते हैं। इसके साथ खाद का उचित मात्रा में उपयोग और समयानुसार सिचाई करने के विधि की भी जानकारी दी जाती है।