डायन प्रताड़ना पर मानवाधिकार आयोग सख्त
किशनगंज। डायन प्रताड़ना के मामलों को मानवाधिकार आयोग ने काफी गंभीरता से लिया। इन मामले क
किशनगंज। डायन प्रताड़ना के मामलों को मानवाधिकार आयोग ने काफी गंभीरता से लिया। इन मामले को लेकर किशनगंज समेत सूबे के अन्य जिलों के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर विगत 10 वर्षों में प्रतिवेदित डायन प्रथा से पीड़ित मामलों के कांडों की विवरणी ¨बदुवार मांगी है। मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद जिले के पुलिस थाने डायन प्रथा से जुड़े मामलों की सूची तैयार करने में जुट गई है। डायन प्रथा को लेकर टाउन थाना क्षेत्र में विगत 10 वर्षों के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो पहला मामला वर्ष 2013 में सामने आया था। पीड़िता के लिखित शिकायत पर टाउन थाना में 24 मई को कांड संख्या 191/13 दर्ज की गई थी। आइपीसी की धारा 323,341,379/34 तथा डायन अधिनियम के तहत मामले की जांच कर रही पुलिस ने 30 जून 2016 को न्यायालय में आरोप पत्र दायर कर मामले का निष्पादन कर दिया था। जबकि दूसरा मामला 23 फरवरी 2016 को सामने आया था।
इस मामले में भी आइपीसी की धारा 341,323/34 तथा 3/4 डायन अधिनियम के तहत कांड संख्या 57/16 दर्ज की गई थी। मामले की जांच कर रही पुलिस ने सभी नामजद आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था।
गौरतलब है कि जिले के ग्रामीण इलाकों में कथित रूप से डायनों की पहचान करने का दावा करने वाले ओझाओं की भरमार लगी है। ये ओझा परिवार में घटित किसी घटना के बाद शोकाकुल परिजनों को अपने झांसे में ले लेते हैं। अपनी रोजी-रोटी को कायम रखने के लिए तथा अपनी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिए गांव की ही किसी महिला को डायन घोषित कर देते हैं। इसके बाद गांव वाले मिलकर महिला व उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर देते हैं तथा कथित डायन को उसके करतूत के हिसाब से सजा भी देते हैं। कई मामलों में तो यह सजा जबरन मैला पिलाने से लेकर हत्या तक में बदल जाती है। जबकि आज भी जिले के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में यह प्रथा बदस्तूर जारी है। यह दीगर बात है कि प्रशासन की नजरों तक पहुंचने से पहले ही इन मामलों का निपटारा कर दिया जाता है।
कोट
डायन प्रताड़ना पर मानवाधिकार आयोग ने प्रतिवेदन मांगा है। इसके लिए रिपोर्ट तैयार की जा रही है। राजीव मिश्रा, एसपी