बिहार के डॉक्टर ने खोजा जीका, डेंगू व हेपेटाइटिस सी का वैक्सीन, जानिए
बिहार के किशनगंज निवासी डॉ. मुमताज नैयर ने जीका, डेंगू व हेपेटाइटिस सी का वैक्सीन खोज लिया है। अभी परीक्षण चल रहा है। यदि सब कुछ सही रहा तो जल्द ही यह बाजार में भी उपलब्ध होगा।
किशनगंज [बीरबल महतो]। जीका, डेंगू व हेपेटाइटिस सी जैसी बीमारियों की रोकथाम की दिशा में प्रयासरत चिकित्सा जगत एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर है। बिहार के किशनगंज निवासी डॉ. मुमताज नैयर ने इन तीनों रोगों के वैक्सीन खोज लिया है। अभी वैक्सीन पर परीक्षण चल रहा है। यदि सब कुछ सही रहा तो जल्द ही यह बाजार में भी उपलब्ध होगा। उनकी यह उपलब्धि प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल 'साइंस इम्यूनोलॉजी' में प्रकाशित हुई है।
इंग्लैंड की प्रयोगशाला में हुई खोज
इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ साउथथेंप्टन की प्रयोशाला में पिछले पांच सालों के शोध के बाद डॉ मुमताज और उनकी टीम को यह कामयाबी मिली है। उन्होंने बताया कि वायरस और वैक्सीन की खोज के लिए उनकी टीम ने हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त 300 रोगियों के डीएनए के अध्ययन किया।
शोध में यह बात सामने आई कि नेचुरल किलर सेल्स के एक रिसेप्टर केआइआर2डीएस2 की मदद से जीका, डेंगू तथा हेपेटाइटिस सी के वायरस को निष्क्रिय किया जा सकता है। साथ ही एक ही टीका से 60 से अधिक वायरसों से प्रतिरक्षा संभव है।
अभी जारी रहेगा परीक्षण
डॉ मुमताज नैयर की शोध टीम के मार्गदर्शक प्रोफेसर सलीम खाकू ने बताया कि शोध के परिणाम उत्साहवर्धक रहा, लेकिन प्रयोग में लाने से पूर्व प्रयोगशाला में कई तरह की परिस्थितियों में इसका परीक्षण करना होगा।
पहले पशुओं पर इसका प्रभाव देखा जाएगा और बाद में क्लीनिकल ट्रायल की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। इन वायरसों की फैमिली का नाम फ्लेवीवायरसेस है। वैक्सीन का नाम परीक्षण के बाद दिया जाएगा। इस वैक्सीन से 60 से भी अधिक वायरसों से प्रतिरक्षा संभव है।
नई विधि भी विकसित
असाध्य रोगों का वैक्सीन खोजने के साथ ही डॉ मुमताज की टीम ने वैक्सीन तैयार करने की नई विधि भी विकसित की है। वह बताते हैं कि अब वैक्सीन विकसित करने के परंपरागत मॉडल को छोडऩे का समय आ गया है। परंपरागत विधि में वायरस के कोट प्रोटीन को टारगेट किया जाता है। नई विधि के तहत कोट प्रोटीन की जगह नॉन-स्ट्रक्चरल प्रोटीन एनएस 3 हेलीकेज को टारगेट किया जाता है।
असाध्य रोगों पर शोध भी प्रकाशित
अपने पीएचडी के दौरान डॉ. मुमताज नैयर कालाजार, एचआइवी व कैंसर पर नियंत्रण की कोशिश करते रहे। सितंबर 2012 में उनका पीएचडी के दौरान शोध प्रकाशित हुआ। नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस, पुणे से उन्होंने इम्यूनोलॉजी में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
इससे पहले एमएससी (बायोटेक्नोलॉजी) और बीएससी (बायोटेक्नोलॉजी) उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली से ही किया। करीब पांच साल से वह इंग्लैंड के साउथथेंप्टन विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट के रूप में कार्यरत हैं।
बचपन में छिन गया पिता का साया
डॉ. नैयर मूलत: किशनगंज के ठाकुरगंज प्रखंड के बेसरबाटी स्थित करबलभिट्टा के रहने वाले हैं। उनके सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया। डॉ. मुमताज नैयर बताते हैं कि बड़े भाई मु. जैनुल आवेदीन व मुश्ताक अहमद ने उनकी परवरिश की।