Move to Jagran APP

कोसी तट के गांव की मुस्लिम लड़कियों ने रचा इतिहास

खगड़िया। जिला मुख्यालय से दूर कोसी किनारे स्थित है चोढ़ली गांव। जिले के सर्वाधिक पिछड़े गांवों में इसकी गिनती होती है। कई तरह की परेशानियों के बीच यहां की छह मुस्लिम लड़कियां हाफिज बनीं हैं। इन लड़कियों को पूरी कुरआन मजीद कंठस्थ याद है। उनकी बौद्धिक क्षमता का यह बड़ा उदाहरण है। चोढ़ली स्थित मदरसा में इन लड़कियों ने तालीम हासिल की है। ये अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा भी है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 06:12 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 06:16 AM (IST)
कोसी तट के गांव की मुस्लिम लड़कियों ने रचा इतिहास
कोसी तट के गांव की मुस्लिम लड़कियों ने रचा इतिहास

खगड़िया। जिला मुख्यालय से दूर कोसी किनारे स्थित है चोढ़ली गांव। जिले के सर्वाधिक पिछड़े गांवों में इसकी गिनती होती है। कई तरह की परेशानियों के बीच यहां की छह मुस्लिम लड़कियां हाफिज बनीं हैं। इन लड़कियों को पूरी कुरआन मजीद कंठस्थ याद है। उनकी बौद्धिक क्षमता का यह बड़ा उदाहरण है। चोढ़ली स्थित मदरसा में इन लड़कियों ने तालीम हासिल की है। ये अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा भी है।

loksabha election banner

इससे पहले 1998 में छोटी मलिया की राजिया सुल्तान हाफिज बनीं थीं। 2012 में माड़र की उम्मे हबीबा (पिता-कारी मु. बुरहान उद्दीन) हाफिज बनीं थीं। यह जिले में पहला उदाहरण है जब एक साथ एक गांव की छह लड़कियां हाफिज बनीं हैं। इन्हें इमारत सरिया पटना के पूर्व मुफ्ती अध्यक्ष हजरत मौलाना मुफ्ती मु. नेमतुल्लाह कासमी ने सम्मानित किया है। आटा चक्की चलाते हैं नगमा के पिता, शहनाज के पिताजी करते हैं मजदूरी

हाफिज बनीं ये लड़कियां साधारण परिवार से आती हैं। लेकिन इनकी तालीम में गरीबी आड़े नहीं आई। नगमा खातून के पिता जरीफुर रहमान आटा चक्की चलाते हैं। इन्हें छह संतान हैं। चार बेटियांऔर दो बेटे। नगमा हाफिज बनीं हैं। जरीफुर रहमान अपनी दूसरी बेटी कुसुम खातून को भी हाफिज बनाना चाहते हैं। इनकी इच्छा है सभी संतान को अच्छी तालीम मिले। जरीफुर रहमान कहते हैं कि बहुत खुश हूं, मेरी बच्ची यहां तक पहुंची है।

तरन्नुम परवीन के पिता मु. निसार साधारण किसान हैं। तरन्नुम हाफिज बनने के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं। उनकी इच्छा सरकारी नौकरी में जाने की है। शहनाज बेगम के पिता हकीम उद्दीन मजदूरी करते हैं। वे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर बेहद सजग हैं। वे कहते हैं कि एक गरीब की बेटी हाफिज बनी है, गर्व की बात है। हाफिज बनने वालों में गुलनाज परवीन, मसीहा परवीन, लाडली परवीन भी शामिल हैं। कोट

इस्लाम में बेटा और बेटी दोनों को शिक्षा में बराबरी का दर्जा है। इसलिए सभी अभिभावक अपने बेटे-बेटी को जरूरी तालीम जरूर दें। हमारे समाज में लड़कियों को कम शिक्षा देने का रिवाज बन गया है। चोढ़ली की बच्चियों ने समाज का मान बढ़ाया है।

-कारी मो. सरफराज आलम, जिला महासचिव, जमियत उलेमा ए हिद, खगड़िया


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.