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बिजली की दुधिया रोशनी में चमक रही है किस्मत

खगड़िया। यह खगड़िया-सहरसा की सीमा पर स्थित सुदूर पंचायत कैंजरी का गवास गांव है। यहां कोसी नदी से काली कोसी संगम करती है। पहले यहां जमींदारों की खेती-बाड़ी हुआ करती थी और इसको लेकर लोग बसते चले गए। धीरे-धीरे गवास गांव बन गया। जमींदारी गई, आजादी की सुनहरी किरण गांव-गांव तक पहुंची, लेकिन गवास गांव में उजास नहीं फैला। विकास के प्रतीक बिजली से यह गांव आजादी के 70वें वर्ष में रोशन हुआ। गांव में जैसे ही दुधिया रोशनी फैली वैसे ही विकास की नई पटकथा तैयार हो गई। बिजली ने पहले 'मिसर जी के बासा' नाम से विख्यात गवास की तस्वीर और तकदीर दोनों ही बदल दी। गांव 'लालटेन युग' से निकल चुका है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 08:00 PM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 08:00 PM (IST)
बिजली की दुधिया रोशनी में चमक रही है किस्मत
बिजली की दुधिया रोशनी में चमक रही है किस्मत

खगड़िया। यह खगड़िया-सहरसा की सीमा पर स्थित सुदूर पंचायत कैंजरी का गवास गांव है। यहां कोसी नदी से काली कोसी संगम करती है। पहले यहां जमींदारों की खेती-बाड़ी हुआ करती थी और इसको लेकर लोग बसते चले गए। धीरे-धीरे गवास गांव बन गया। जमींदारी गई, आजादी की सुनहरी किरण गांव-गांव तक पहुंची, लेकिन गवास गांव में उजास नहीं फैला। विकास के प्रतीक बिजली से यह गांव आजादी के 70वें वर्ष में रोशन हुआ। गांव में जैसे ही दुधिया रोशनी फैली वैसे ही विकास की नई पटकथा तैयार हो गई। बिजली ने पहले 'मिसर जी के बासा' नाम से विख्यात गवास की तस्वीर और तकदीर दोनों ही बदल दी। गांव 'लालटेन युग' से निकल चुका है।

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कोसी और काली कोसी के संगम का यह इलाका मक्का की खेती को लेकर प्रसिद्ध है। यहां की मिट्टी पीला सोना उपजाती है। बिजली नहीं थी, तो बाहर के व्यवसायी यहां कैंप नहीं करते थे। अब बाहर के व्यवसायी आते हैं, गांव में कैंप करते हैं तथा किसानों से मक्का खरीदते हैं। किसानों को मोल-तोल का मौका मिलता है और मिलती है मक्का की उचित कीमत।

बानो ¨सह 60 के आसपास पहुंच चुके हैं। कहते हैं- कभी नहीं सोचा था, यहां भी बिजली पहुंचेगी। लेकिन, बिजली आई, तो एकाएक सबकुछ बदल गया। मेरी दिनचर्या भी बदल गई। पहले शाम से पहले खेत-खलिहान से लौट आते थे। सांप-बिच्छू, चोर-उच्चके का डर सताते रहता था। अब ये बात नहीं रही। रात-बिरात भी आराम से घर लौटते हैं। बिजली आने से सिर्फ बानो ¨सह की ही बांछे नहीं खिली, छात्र पंचम की पढ़ाई का तरीका भी बदला। पंचम ने कहा- पहले पढ़ाई का अधिकांश हिस्सा दिन में पूरा करते थे। लालटेन की रोशनी में आंखें दुखती थी। लेकिन, अब तो रातभर भी पढ़ लेते हैं। न लैपटॉप, न मोबाइल चार्ज करने की समस्या रही। 50 वर्षीय

अनिल ¨सह खेती-किसानी करते हैं। कहा, पहले मक्का व्यवसायी यहां रुकना नहीं चाहते थे। अब उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। दुकानदार

दिलीप कुमार कहते हैं- पहले दिन की दुकानदारी थी। अब तो रात के दस बजे तक दुकान खोलकर बैठे रहते हैं। आमदनी बढ़ी है। बिजली से खुशहाली आई है।

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