पपीते की खेती सीखने गढ़मोहनी आ रहे लोग
खगड़िया। जिले का एक गांव है गढ़मोहनी। दो वर्ष पहले तक एनएच-31 के किनारे का यह गांव एक
खगड़िया। जिले का एक गांव है गढ़मोहनी। दो वर्ष पहले तक एनएच-31 के किनारे का यह गांव एक आम गांव की तरह था। परंतु, कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़कर यहां के किसानों ने जब पपीते की खेती शुरू की, तो आज यह खास गांव बन चुका है। यहां दूर-दराज से किसान पपीते की खेती देखने, सीखने आते हैं। पपीता के एक पौधे से यहां के किसान एक ¨क्वटल तक फल प्राप्त कर रहे हैं। एक एकड़ में 70-80 हजार रुपये खर्च कर सात से आठ लाख की आमदनी हो रही है। इस तरह इनकी आमदनी दोगुणी नहीं सात-आठ गुणी है।
पांच कट्ठे से शुरू हुई थी खेती, 15 एकड़ पर पहुंची
वर्ष 2017 में शिक्षक धीरज कुमार ने गढ़मोहनी में मात्र पांच कट्ठे में पपीते की खेती शुरू की थी। कुल खर्च आया 17 हजार और आमदनी हुई एक लाख तीन हजार। इसके बाद तो यहां के कई किसानों ने छोटे-बड़े पैमाने पर इसकी खेती शुरू की है। खुद धीरज कुमार तीन बीघा में पपीते की खेती की है। रामनरेश प्रसाद ने भी दो बीघा में पपीता लगाया है। अभी 15 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। रकबा बढ़ने की उम्मीद है। धीरज कुमार कहते हैं- गढ़मोहनी आज पपीता की खेती देखने,इस खेती के गुर सीखने दूर-दूर से किसान आ रहे हैं। इसमें कृषि विज्ञान केंद्र खगड़िया का अहम योगदान है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान डॉ. ब्रजेंदु कुमार, उद्यान वैज्ञानिक डॉ. रणजीत प्रताप पंडित बीज की खरीदारी, नर्सरी तैयार करने से लेकर फसल की उपचार तक में मदद करते हैं।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिकों ने लिया जायजा
19 जनवरी को यहां बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वरीय उद्यान वैज्ञानिक डॉ. रुबी रानी और कनीय वैज्ञानिक मुनेश्वर प्रसाद पहुंचे। इस मौके पर कृषि विज्ञान केंद्र खगड़िया के प्रधान डॉ. ब्रजेंदु कुमार और डॉ. रणजीत प्रताप पंडित भी मौजूद थे। सबौर के उद्यान वैज्ञानिक यहां पपीते की फसल देख आश्चर्य में पड़ गए। इनलोगों की माने तो पूरे सूबे में पपीते की ऐसी खेती नहीं हो रही है।
कोट
'गढ़मोहनी पपीता की खेती देखने दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। सूबे में पपीता की ऐसी खेती नहीं हो रही है। आज किसान पपीता की खेती कर अपनी आमदनी छह से आठ गुणी तक कर रहे हैं।'
= डॉ. ब्रजेंदु कुमार, प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र खगड़िया।