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अब बस नाम का चावल का कटोरा रह गया है आजमनगर

कटिहार। कभी चावल की कटोरा कहे जाने वाले आजमनगर क्षेत्र में अब धान की खेती से किसान विम

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 10:50 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 05:05 AM (IST)
अब बस नाम का चावल का कटोरा रह गया है आजमनगर
अब बस नाम का चावल का कटोरा रह गया है आजमनगर

कटिहार। कभी चावल की कटोरा कहे जाने वाले आजमनगर क्षेत्र में अब धान की खेती से किसान विमुख होने लगे हैं। दरअसल लगातार दर्द सहते किसानों के जख्म पर कभी किसी ने मरहम लगाने की कोशिश नहीं की। कभी किसी जनप्रतिनिधि ने धान की खेती से कन्नी काट रहे किसानों का दर्द नहीं सुना और न ही कर्ज में डूबते किसानों को किसी स्तर से कोई सहायता ही मिली। नतीजन बारसोई अनुमंडल में बड़े पैमाने पर धान की खेती से जुड़े किसान अब मक्का, मखाना और अन्य नगदी फसलों की खेती में दिलचस्पी ले रहे है। लगातार हुए घाटे से किसानों में धान की खेती का क्रेज घटता जा रहा है। अब किसान बस सीमित रकवे पर धान की खेती करते है ताकि साल भर चावल खरीद कर न खाना पड़े।

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कभी गरमा धान के लिए प्रसिद्ध था क्षेत्र, चलती थी दर्जनों राइस मिलें :

बारसोई अनुमंडल का यह इलाका गरमा धान की खेती के बूते अलग पहचान रखता था। गरमा धान की खेती से यहां किसानों नें समृद्धि की नींव रखनी शुरू की। अच्छी उपज के कारण इस क्षेत्र में दर्जनों राइस मिल लगे। इससे काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिला और धान बिक्री को एक बेहतर बाजार। पर महानंदा की उफनती धारा नें गरमा धान के किसानों को हर साल बर्बादी का जख्म दिया। नतीजन गरमा की खेती में लगातार घाटे ने किसानों की कमर तोड़ दी और राइस मिल भी बंद हो गए। पूरे प्रखंड में पैक्स द्वारा संचालित केवल एक ही राइस मिल बचा है। सभी छोटे राइस मील बंद हो चुके है। अब किसानों की खेती में लागत बढ़ जाने और बेहतर समर्थन मूल्य नहीं मिल पाने से धान की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। जिसके लिए किसी जनप्रतिनिधि द्वारा प्रयास नहीं किये जाने से किसानों का एक बड़ा वर्ग नाखुश है।

क्या कहते हैं क्षेत्र के किसान :

क्षेत्र के किसान बाढ़ से होने वाली क्षति से लगातार कर्ज तले दबे जा रहे है। स्थानीय किसान मुनावर आलम कहते है कि गरमा धान की खेती में अब वो चमक रही नहीं। हर साल बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती है।इस कारण हमलोग खेती छोड़ परदेस जा रहे हैं। वहीं अरिहाना में राइस मील संचालित करने वाले मनोज कुमार राय बताते है कि राइस मील को धान की घटती पैदावार, बढ़ते लागत व मंडी की दूरी के कारण बंद करना पड़ा। वही स्थानीय नारायण प्रसाद दीवाना, कार्तिक मंडल, बदनलाल केवट आदि ने कहा कि बाढ़ के स्थायी समाधान ढूंढने का प्रयास नहीं होना कृषकों के साथ अन्याय है।

क्या कहते है कृषि पदाधिकारी

प्रखंड कृषि पदाधिकारी विनय पाठक ने बताया कि प्रखंड क्षेत्र में हो रही धान की खेती के रकवे में कुछ खास अंतर नहीं आया है। बाढ़ से फसल को हो रहे नुकसान से उत्पादन जरूर प्रभावित होता है। नए वित्तीय वर्ष से छोटे राइस मिल पर विभाग द्वारा सब्सिडी दी जाएगी। फिर से क्षेत्र में राइस मिल लगाने का सिलसिला शुरु होगा।


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