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दफन हैं पूर्व सीएम के सपने, नहीं मिली उड़ान

कटिहार। कदवा प्रखंड सहित जिले का ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षा के कारण अपने अस्तित्व की जंग ल

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 07:02 PM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 07:02 PM (IST)
दफन हैं पूर्व सीएम के सपने, नहीं मिली उड़ान
दफन हैं पूर्व सीएम के सपने, नहीं मिली उड़ान

कटिहार। कदवा प्रखंड सहित जिले का ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षा के कारण अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है। कदवा प्रखंड क्षेत्र के सौनैली बाजार स्थित सरस्वती पुस्तकालय कभी जिले की शान हुआ करता था। इस पुस्तकालय सह कला केंद्र की ख्याति के चलते 80 के दशक में यहां तत्कालीन मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री भी आए थे। इस दौरान उन्होंने इस पुस्तकालय को क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान बताते हुए इसके सतत उत्थान की बात भी कही थी। समय के साथ अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन हो गए। आज यह पुस्तकालय अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहा है। पूर्व सीएम के सपनों को आज तक उड़ान नहीं मिल पाई है।

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पुस्तकालय की स्थापना सन 1946 में स्थानीय निवासी सतीश प्रसाद दास ने अपनी पत्नी की स्मृति में जमीन दान देकर की थी। प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत पुस्तकालय का भवन एवं कला केंद्र का निर्माण कराया गया था। इसके साथ ही पुस्तकालय के बाहरी प्रांगण में बच्चों के मनोरंजन एवं खेल के लिए क्रीड़ा केंद्र भी बनाया गया था। इसकी ख्याति को सुन पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री, तत्कालीन शिक्षा मंत्री सह सांसद स्व. भोला विश्वास सहित कई लोग यहां पहुंचे थे और इसे सांस्कृतिक धरोहर के रुप विकसित करने की बात कही थी। उस दौर में राज्य सरकार की ओर से प्रति माह 14 पत्रिकाएं भी यहां आती थी। जबकि विभिन्न नामचीन साहित्यकारों की लगभग सात हजार से अधिक पुस्तकें थी। विभिन्न अवसरों पर यहां नाटक का मंचन भी होता था। लेकिन 80 के दशक के बाद पुस्तकालय की स्थिति लगातार चरमराती गई। 10 वर्ष पूर्व प्रखंड स्तर से लगभग पांच लाख की राशि से पुस्तकालय का जीर्णोद्धार किया गया था। लेकिन कार्य मे बरती गई अनियमितता इसके विकास में बाधक बनी रही। पुस्तकालय के बाहरी परिसर की जमीन स्थानीय लोगों द्वारा चारों ओर से अतिक्रमित कर लिया गया है। क्रीड़ा केंद्र का नामोनिशान तक मिट चुका है। यहां जुटने वाली भीड़ अब बस चर्चाओं तक सिमट चुकी है।

क्या कहते पूर्व पुस्तकालय प्रभारी :

1962 से 1977 तक पुस्तकालय के प्रभारी रहे वयोवृद्ध श्रीकृष्ण साह ने कहा कि एक जमाने में इस पुस्तकालय की हर जगह चर्चा होती थी। नामचीन लोग यहां पहुंच कर पुस्तकालय की व्यवस्था को देखते थे। किताब पढ़ने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। बाद में हर स्तर से हुई उपेक्षा से इसकी स्थिति बद से बदतर होती चली गई। तीन वर्ष पूर्व भी सरकार द्वारा लगभग 50 हजार मूल्य की पुस्तकें भेजी गई थी। जिसे उन्होंने अपने मंदिर में रखा है। उन्होंने प्रशासन से पुस्तकालय को अतिक्रमण मुक्त करा इसके जीर्णोद्धार की मांग की है।

क्या कहते हैं बीडीओ :

प्रखंड विकास पदाधिकारी डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि वे पुस्तकालय की स्थिति से अवगत हुए हैं। इसकी दशा सुधारने का उनके स्तर से हर आवश्यक प्रयास किया जाएगा। इसको लेकर वे पहल कर रहे हैं।


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