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गंगा-महानंदा के आंगन में सहज पार नहीं लगती है चुनावी नैया

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By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 07:27 PM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 07:27 PM (IST)
गंगा-महानंदा के आंगन में सहज 
पार नहीं लगती है चुनावी नैया
गंगा-महानंदा के आंगन में सहज पार नहीं लगती है चुनावी नैया

कटिहार। गंगा, महानंदा, परमान, कनकई व कुछ हद तक कोसी यानि इन पंच नदियों के आंगन में सीमांचल की सियासी तासिर सदा से चुनावी कसरत को लेकर अबूझ पहेली रह जाती है। यही कारण है कि यहां किसी भी दल या प्रत्याशी के लिए अपनी चुनावी नैया को पार लगा लेना आसान नहीं होता है। यहां बारिश के मौसम में इन नदियों को कोसने वाले लोग ही गर्मी की दस्तक के साथ इसे मां का स्वरुप मान इसकी पूजा-अर्चना भी खूब करते हैं। लोग यह मान लेते हैं कि पालने वाली मैया भले ही गुस्से में उन्हें थोड़ा परेशान करती है, लेकिन वे उनकी दुश्मन कतई नहीं हो सकती है। जन मानस की यह सहृदयता या प्रवृति अक्सर चुनाव के मौसम में भी बरकरार रह जाती है। ऐसे में कभी वोट का समीकरण नाप विजयी गीत गाने वाले को भी चुनाव परिणाम बाद मंझधार में फंसे दिखते हैं।

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बहरहाल आसन्न लोकसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन के साथ राजग भी चुनावी जंग के लिए हर बिसात पूरी सावधानी से बिछा रही है, लेकिन घर से लेकर बाहर तक उनकी मुश्किलें सुरसा की मुंह की तरह बढ़ती जा रही है। भले ही हर गठबंधन ऑल इज वेल का प्रदर्शन कर रही हो, लेकिन अंदर की हालत सबकी बदरंग है। वोट समीकरण साधने की जुगत के बीच मौन बागी स्वर भी एक नई हिलोर की तरह चुनावी नैया को डगमगा सकती है। कटिहार में राजग में जदयू के खाते में यह सीट गई है और पूर्व मंत्री दुलाल चंद गोस्वामी प्रत्याशी भी घोषित हो चुके हैं। महागठबंधन की ओर से जद्दोजहद के बाद कांग्रेस के हिस्से यह सीट रह पाई है और निवर्तमान सांसद तारिक अनवर सोमवार को अपना नामांकन पर्चा दाखिल करने वाले हैं। राकांपा से पूर्व विधायक मो. शकूर नामांकन दाखिल करने वाले हैं। इधर विधान पार्षद अशोक अग्रवाल के भी 26 मार्च को नामांकन दाखिल करने की तैयारी में है। जाहिर तौर पर इस स्थिति में कसमकश बढ़ना तय है। इसी तरह पूर्णिया में भी महागठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह की घोषणा हो चुकी है। ऐसे में जाप के संरक्षक सह मधेपुरा के निवर्तमान सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का भी मैदान में उतरना तय माना जा रहा है। यह स्थिति दोनों ही गठबंधन की परेशानी बढ़ाने वाली हो सकती है। इसके अलावा कटिहार, किशनगंज, अररिया व पूर्णिया में भी गठबंधन दलों के कार्यकर्ताओं का जमीनी मिलान आसान नहीं होगा। जमीनी स्तर पर मौन बगावत किसी की भी नैया डूबो सकती है।

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बागी स्वर दबाने को वरीय नेताओं की शुरु हुई भाग-दौड़

कटिहार : बता दें कि गठबंधन के बाद जमीनी स्तर पर हर दल में बागी स्वर उठ रहे हैं। कहीं यह आवाज तेज है तो कहीं स्वरहीन। यह हर दल के प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता तक भांप चुके हैं। इसके लिए हर दल के प्रदेश स्तर के नेताओं का भाग-दौड़ भी शुरु हो चुका है। वरीय कार्यकर्ताओं के दर्द पर मरहम लगा उन्हें जंग के लिए तैयार करने की हर कोशिश की जा रही है।


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