प्राणपुर में महानंदा हर वर्ष दे जाती है दर्द, नहीं हो पा रहा निदान
कटिहार। यह दर्द दशकों का है। चुनावी मौसम में आश्वासनों की झड़ी लगती है लेकिन निदान न
कटिहार। यह दर्द दशकों का है। चुनावी मौसम में आश्वासनों की झड़ी लगती है, लेकिन निदान नदारद है। फलाफल हर हाल किसानों की सोना उगलने वाली जमीन महानंदा के गर्भ में समाती जा रही है। कल के समृद्ध किसान आज खुद मजदूरी कर पेट पाल रहे हैं। प्राणपुर का लाभा दियारा आज महानंदा नदी के गर्भ में समा चुका है। कई गांव तक कटाव की भेट चढ़ चुके हैं। प्रखंड के जल्ला हरेरामपुर, ओर्लाबाडी, पुरानी मकरचल्लाह सहित आधा दर्जन गांव के लोग पूरी तरह विस्थापित हो चुके है। शेष गांव के लोगों को दिन रात महानंदा नदी का खौफ सताता रहता है। महानंदा हर वर्ष गांव की ओर अपनी पांव बढ़ाती जा रही है और लोगों की सांसे अटकी हुई है। साल दर साल महानंदा की धारा में बदलाव आता रहा है। महानंदा की बेखौफ धारा से हर वर्ष क्षेत्र की भोगौलिक संरचना भी बदलती रही है। प्रखंड के जल्लाहरेरामपुर, पुरानी मकर्चाल्लाह व ओर्लाबाडी गांव महानंदा नदी के गर्भ में कई साल पूर्व समां चुका है। वहीं लालगंज भगत टोला, गजहर व ग्रामदेवती गांव के समीप महानंदा का कटाव पहुंच चुका है। विस्थापित गांवों के लोगों के लिए आज तक पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो पाई है। जहां लोग बसे हैं, वहां की बासगीत पर्चा के लिए हर दर पर दस्तक देकर थक चुके हैं। कई लोग आज भी महानंदा तटबंध के किनारे अपना जीवन-बसर करने को विवश हैं। इतना ही नहीं बाढ़ के कारण हर वर्ष बाढ़ के समय क्षेत्र के करीब पांच सौ एकड़ भूमि बंजर हो जाते हैं। इस दर्द से किसान अलग कराह रहे हैं।
क्या कहते हैं ग्रामीण : समसुल हक, देवन मंडल, मु. तैमुर, बिसू मंडल, सामुज यादव, मु. सबीर, मु. जहांगीर, मु. मुसलम, मु. अजाबुल, प्रताप सिंह सहित कई ग्रामीणों ने बताया की महानंदा नदी का कटाव का निदान अब तक नहीं निकल पाया है। चुनाव के समय सभी लोग वादे करते हैं, लेकिन चुनाव बाद सारी बात भूला दी जाती है। इसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ व बरसात के समय ही जनप्रतिनिधि व प्रशासन का ध्यान इस ओर आता है। बाढ़ के बाद तो कोई पलटकर भी इसे देखने नहीं आते हैं। लोगों ने बताया की महानंदा के कटाव के कारण कई लोग आज भी बेघर हैं। कई एकड़ भूमि बंजर हो गई है। भूमि रहते जमींदार भूमिहीन हो गए हैं।