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गंगा की फुफकार से थर-थर कांप रहा बाघमारा

चुनाव- मुद्?दा-- कटिहार। कभी यह इलाका जंगलों से घिरा था। बाघ आए दिन यहां आतंक मचा

By JagranEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 02:47 AM (IST)Updated: Sun, 07 Apr 2019 06:29 AM (IST)
गंगा की फुफकार से थर-थर कांप रहा बाघमारा
गंगा की फुफकार से थर-थर कांप रहा बाघमारा

चुनाव- मुद्?दा-- कटिहार। कभी यह इलाका जंगलों से घिरा था। बाघ आए दिन यहां आतंक मचाता था। इससे लोगों ने जीना हराम कर दिया था। फलाफल लोगों ने हिम्मत जुटाई और आतंक फैला रहे एक बाघ को मार गिराया। तब से लोग इस गांव को बाघमारा गांव के रुप में जानते हैं। उस समय बाघ से भी नहीं डरने वाला यह गांव आज गंगा की फुफकार से थर-थर कांप रहा है। लोग अपने भविष्य को लेकर चितित है। दिन-रात उन्हें गंगा का खौफ सताता रहता है।

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फिक्र में डूबा हर चेहरा अपने आप में बड़ा सवाल है। शासन-प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों से पूछा जा रहा मौन सवाल निरुत्तर है। गंगा गांव की ओर पांव बढ़ाती जा रही है और लोगों की सांसें अटकी हुई है। कई सालों से गंगा की धारा में भी काफी बदलाव आता रहा है, इससे क्षेत्र की भौगोलिक संरचना भी बिगड़ती रही है। बाघमारा पंचायत के कुछ हिस्से, नगर पंचायत के गांधी टोला, सिग्नल टोला के समीप कटाव का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। बुजुर्गो की माने तो कभी बाघमारा गांव के चारों तरफ जंगल ही जंगल था। जहां बाघ निवास करते थे। ऐसे में लोगों के लिए जीना हराम हो गया था। इस पर लोगों ने बाघ को मारा तभी से उक्त जंगल वाले इलाके को बाघमारा नाम से पुकारा जाने लगा। इसके अलावा बाघमारा नाम पड़ने की कई किविदती भी है। कभी उक्त गांव से कई किलोमीटर दूर पश्चिम की तरफ बैजनाथपुर व भागलपुर जिले के बाखरपुर गांव के समीप से बहने वाली गंगा साल दर साल पूरब की ओर शिफ्ट होती जा रही है, जहां बस्ती थी लोगों का शोरगुल था, वहां गंगा बह रही है। या फिर गाद ने जगह बना ली है। कटाव की रोकथाम के उपाय भी हुए, पर ठोस पहल का साफ अभाव रहा। क्षेत्र की मुख्य समस्या के निदान को लेकर लोकसभा, राज्यसभा, विधान परिषद, विधानसभा सहित हर उचित स्थान पर यह मुद्दा उठा। वहीं बाघमारा व गांधी टोला में गत कुछ माह पूर्व हर पार्टी के नेताओं का तूफानी दौरा हुआ तथा पहुंचे नेताओं ने वादे व अश्वासन की झड़ी लगा दी, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हो पाया। कटाव स्थल के समीप बचे जमीन पर गेहूं की फसल भी लहलहा रही है। गेहूं बचेगी या नहीं लोगों को पता नहीं है। क्या कहते हैं प्रभावित लोग

श्रीकांत पासवान कहते है कि गंगा के कटनिया लगी गईले हो बबुआ, अभी तक गांव से कुछ ही दूर पर छै, लेकिन व्यवस्था नै होते त सावन भादो में त गांव पर खतरा होते। कहा कि चुनाव से पहले सब पार्टी के नेता सनी अईले अश्वासन देल के फोटो खींचवईलके पर अब तक कुछु नै हो रहल छय। अरूण पासवान कहते है कि बीस बीघा के आसपास खेती योग्य भूमि गंगा में समा गई, अब यही स्थिति रही तो आने वाले बरसात में आशियाना भी छिन जायेगा। दिनेश पासवान कहते है कि गंगा 10 किलोमीटर दूर पश्चिम की तरफ बहती थी, अब पूरब की ओर गांव के समीप आ गई है, यही स्थिति रही तो गांव तबाह हो जायेगा। अशोक कुमार मल्लिक कहते है कि पौने तीन बीघा खेत समा गया, जल्द व्यवस्था नहीं हुआ तो गांव की स्थिति खराब होगी। कैलाश पासवान कहते है कि गंगा नदी में काफी बदलाव हुआ है, सालों पहले कई किलोमीटर पश्चिम बहने वाली गंगा सीधे पूरब दिशा की ओर से बह रही है। कहा कि गंगा गांव के करीब आ गई है। कहा कि नेताओं का अश्वासन मिला पर धरातल पर कुछ नहीं दिख रहा। मंटू पासवान ने कहा कि जल्द व्यवस्था नहीं हुई तो आने वाले समय में स्थिति विकराल हो जाएगी। बैद्यनाथ पासवान ने कहा कि नेताओं का अश्वासन सुनते-सुनते गंगा गांव के करीब आ गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। राजेंद्र पोद्दार कहते है कि 19 बीघा खेत गंगा में समा चुकी है। सब कुछ बर्बाद हो गया है। कटाव स्थल के समीप गेहूं की फसल कटवा रहे जग्गू ने कहा कि इस बार तो फसल हो गई अगली बार की उम्मीद कम है..।


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