लंगोट बंद पीर बाबा के दर पर टूटती है मजहब की दीवार
- सन 1136 में लंगोट बंद पीर बाबा आए थे जलकी, हर जुमे को जुटती है भीड़ -बैशाख माह की
- सन 1136 में लंगोट बंद पीर बाबा आए थे जलकी, हर जुमे को जुटती है भीड़
-बैशाख माह की पहली व आठवीं तारीख को लगता है भव्य मेला
विनोद कुमार राय संवाद सूत्र, आजमनगर (कटिहार) : आजमनगर प्रखंड अंतर्गत जलकी में स्थित पीर मजार लोगों के लिए असीम आस्था का केंद्र बना हुआ है। लोगों में यह विश्वास है कि इस मजार पर अकीदत से मांगी गई दुआ खाली नहीं जाती। यही वजह है कि प्रत्येक दिन व खास कर हर जुमे को यहां जिले की विभिन्न क्षेत्रों से लोग दुआ मांगने पहुंचते है। यह मजार जितना ही भव्य है, उतना ही समृद्ध इसका इतिहास है। स्थानीय लोगों ने बताया कि 1136 ई में तुर्की से पीरबाबा शैयद शाह हुसैन तेगे बरहाना जलालुद्दीन अलैह रमतुल्लाह अपने सात साथियों के साथ यहां आये थे और इस मजार की स्थापना हुई थी। इस मजार को लंगोट बंद पीर मजार के नाम से भी जाना जाता है। बंगाल के पांडवा, मनिहारी व् सिलटर जैसे कुछ प्रसिद्ध पीर मजार भी इसी मजार के समकालीन है।
दूर-दूर तक है ख्याति
इस मजार की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। पश्चिम बंगाल व झारखंड के कई सीमावर्ती जिलों से भी काफी तादाद में लोग यहां दुआ मांगने व चादरपोशी करने पहुंचते हैं। हर जुमे को लोग इस मजार में नमाज अदा करते है। बैशाख मास की पहली व आठवीं तारीख को लंगोट बंद पीर बाबा के परिसर में बड़ा मेला लगता है। इससे लाखों की संख्या में अकीदतमंद पहुंचते हैं। परंतु किसी भी तरह के वाद्य यंत्र यहां नहीं बजते है। स्थानीय निवासी मु. सलाउद्दीन, मंसूर आलम, मु. दानी, अब्दुल रज्जाक, मु. कोहिनूर, निरंजन यादव, धीरेन्द्र शर्मा सहित अन्य लोगों ने बताया कि लंगोट बंद बाबा को वाद्य यन्त्र की आवाज पसंद नहीं है। इस कारण मजार के आसपास से अगर बारात भी गुजरती है तो बहुत ही अदब से। हिन्दू हो या मुस्लिम हर वर्ग के लोगों की आस्था इससे जुड़ी हुई है।