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रोजगार के अभाव में बीड़ी बना घर-गृहस्थी चला रहीं महिलाएं

विकास के मायने में लगातार आगे बढ़ रहा कैमूर जिला आज राज्य में अपना परचम लहरा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 07:15 PM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2019 06:39 AM (IST)
रोजगार के अभाव में बीड़ी बना घर-गृहस्थी चला रहीं महिलाएं
रोजगार के अभाव में बीड़ी बना घर-गृहस्थी चला रहीं महिलाएं

विकास के मायने में लगातार आगे बढ़ रहा कैमूर जिला आज राज्य में अपना परचम लहरा रहा है। कई योजनाओं में बेहतर प्रदर्शन करने के चलते यहां के वरीय पदाधिकारी भी सम्मानित हो चुके हैं। जिले के कोने-कोने तक विकास की किरण पहुंचाने के लिए जिले के पदाधिकारियों व कर्मियों द्वारा लगातार परिश्रम किया जा रहा है। लेकिन जिले के भगवानपुर प्रखंड के टोड़ी गांव में सरकार की योजनाएं और पदाधिकारियों का परिश्रम उस समय अधूरा लगता है जब यहां की महिलाओं को बीड़ी बनाते हुए देखना पड़ता है। इनके पास रोजगार का अभाव है। मजबूरी में बीड़ी बना कर घर गृहस्थी संभाल रही हैं। करें भी तो क्या, कोई और काम इन्हें मिल नहीं रहा। घर के खर्च से लेकर बाल-बच्चों के भरण-पोषण के लिए कोई दूसरा उपाय नहीं। पुरुष वर्ग द्वारा थोड़ी बहुत जमीन में खेती करने से जो अन्न उपजता है उससे पूरे वर्ष का गुजारा होता है। ऐसे में इस महंगाई के दौर में महिलाएं भी बीड़ी बना कर कुछ पैसा कमाती है और अपने घर गृहस्थी में पुरुष वर्ग का सहयोग करती हैं। लेकिन इससे उनकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधर रही। न ही इनके बाल-बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल रही है।

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कई प्रांतों में जाती है यहां की बनी बीड़ी -

टोडी गांव की महिलाएं बताती हैं कि गांव के अधिकांश घरों की महिलाएं बीड़ी बनाने का कार्य करती हैं। वर्तमान समय में टोड़ी का बनाई गई बीड़ी बंगाल वाराणसी झारखंड चैनपुर आदि जगहों पर कारोबारी ले जाते हैं। बीड़ी बनाने वाली महिलाओं में शहनाज खातून, खासगुन रुखसार, जरीना खातून, खुशबू, शाहजहां बीबी, रूबी खातून, शहजादी खातून, शबनम खातून, नूर हंसा बीबी आदि महिलाओं ने बताया कि बंगाल वाराणसी चैनपुर झारखंड के व्यापारी बीड़ी बनाने के लिए अपना सूता व सूखा लाकर हम लोगों को देते हैं। दिए हुए सूखा व सुता से हम लोग अपना केंदु पत्ते को लगाकर बीड़ी को बनाते हैं। एक हजार बीड़ी का 115 रुपये मिलता है। इसमें अपना केंदू पत्ता व अन्य सामान लगाने के बाद मात्र 60-65 रुपया बचता है। महिलाओं ने बताया कि एक दिन में एक महिला लगभग एक हजार बीड़ी बना देती हैं। इससे कितनी भी मेहनत करने पर एक माह में 18 सौ रुपये से ज्यादा नहीं बचता। इतने पैसे में ही घर का खर्च और बच्चों का भरण-पोषण करना पड़ता है। इसके चलते किसी दूसरे कार्य के लिए पैसा नहीं बचता।

सरकार की योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ -

महिलाओं ने बताया कि सरकार के द्वारा महिलाओं को घरेलू उद्योग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके लिए ऋण मुहैया कराया जा रहा है। खास कर जीविका द्वारा बेरोजगार महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अगरबत्ती, सत्तू आदि बना कर बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन टोड़ी गांव की महिलाओं को किसी तरह का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। यहां की महिलाओं को सरकार की किसी योजना के तहत अब तक कोई लाभ नहीं मिला। महिलाओं ने बताया कि सरकार नशा से दूर रहने के लिए लोगों को जागरूक कर रही है। लेकिन विवशता है कि हमलोग नशा की वस्तु ही बना रहे हैं। क्या कहते हैं बीडीओ-

जीविका समूह के द्वारा प्रशिक्षण देकर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए ऋण मुहैया कराने की व्यवस्था है। यहां की महिलाओं को अब तक जीविका द्वारा क्यों नहीं जोड़ा गया इसके बारे में पता लगाया जाएगा। साथ ही शीघ्र इन्हें समूह में जोड़ कर कोई घरेलू उद्योग कराया जाएगा। ताकि यहां की महिला नशा की वस्तु न बनाए।

- मयंक कुमार सिंह, बीडीओ


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