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खुद अंधकार में रह दूसरों को रोशनी दे रहे शिवशंकर

मन में विश्वास और दिल में जज्बा हो तो कुछ ही असंभव नहीं है। इसी विश्वास और जज्बा की बदौलत ि

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 05:47 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 05:47 PM (IST)
खुद अंधकार में रह दूसरों को रोशनी दे रहे शिवशंकर
खुद अंधकार में रह दूसरों को रोशनी दे रहे शिवशंकर

मन में विश्वास और दिल में जज्बा हो तो कुछ ही असंभव नहीं है। इसी विश्वास और जज्बा की बदौलत शिवशंकर उपाध्याय ने दिव्यांगता को कभी अपने सामने टिकने नहीं दिया। जी हां हम बात कर रहें हैं रामगढ़ प्रखंड के सिझुआं गांव शिवशंकर उपाध्याय की। जो खुद अंधकार में रह दूसरों को रोशनी देने का काम कर रहें हैं। 12 वर्ष से सिझुआं मिडिल स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। जन्मजात दोनों आंख से अंधे 45 वर्षीय शिवशंकर सिझुआं गांव निवासी श्रीराम उपाध्याय के तीन पुत्र में सबसे छोटे हैं। इनके जीवन के शुरूआती क्षणों में परिजनों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी। दिव्यांग भी किसी अंग से नहीं बल्कि दोनों आंख से होना अपने आप में अभिशाप है। बावजूद वे जीवन से हार नहीं माने। दोनों आंख से अंधे होते हुए भी वे कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखते। यही कारण है कि इनकी कर्मठता व संगीत को लेकर दिल्ली में 22 दिसंबर 2016 को दिनकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके पहले वे राष्ट्रीय कवि संगम में भी हिस्सा लेकर कविता के क्षेत्र में कैमूर का मान बढ़ा चुके हैं। कानून के ज्ञाता, जुबान पर सरस्वती का वास भी है। वे कहते हैं कि भगवान के सामने किसी का वश नहीं। लेकिन अगर लगन हो तो आदमी कुछ भी कर सकता है।

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जहां से पाई प्रारंभिक शिक्षा, वहीं बने शिक्षक -

प्रारंभिक शिक्षा गांव के इसी विद्यालय से शुरू किए और फिर यहीं गुरु बन शिक्षा दे रहे हैं। इनके दिल दिमाग व वाणी को देख पिता ने इन्हें वाराणसी शिक्षा के लिए भेजा। 1999 में यूपी बोर्ड के हनुमान प्रसाद पोद्दार स्कूल दुर्गा कुंड वाराणसी में दाखिला लिए। यहां से पढ़ाई पूरी होने के पश्चात इंटर की पढ़ाई शुरू हुई। 2001 में राजकीय दृष्टिहीन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय वाराणसी से वेल पद्धति से इंटर पास किए। इसी दौरान वे संगीत का भी कला सीखते रहे। फिर उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए। 2005 में इसी पद्धति से दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएड की पढ़ाई पूरी कर अन्य लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बन गए। इस दौरान कई तरह की परिस्थितियों का भी उन्हें सामना करना पड़ा। फिर भी वे लक्ष्य पाने की दिशा में आगे बढ़ते गए। 2007 जनवरी में स्टीफन कॉलेज दिल्ली से एमए बीएड की डिग्री हासिल कर शिक्षा जगत में अपनी पहचान कायम कर लिए। 14 फरवरी 2007 को इनकी नियुक्ति सिझुआं मध्य विद्यालय में शिक्षक के पद पर हुई। संस्कृत भाषा पर इनकी पकड़ अच्छी होने के कारण वे छात्रों को इस विषय का ज्ञान देते रहे। अपग्रेड हाईस्कूल का दर्जा मिलते ही नवंबर 2014 को इनका हाईस्कूल के शिक्षक के रुप में प्रोन्नति हो गई। तबला वादक व हारमोनियम के कला से भी वे परिपूर्ण हैं। इलाके में किसी तरह के आयोजन में लोग इन्हें अपने यहां ले जाते हैं। इसके लिए वे कोई शुल्क भी नहीं लेते। प्रतिदिन स्कूल समय से जाना इनके दिनचर्या में है। खाली समय में लोग उनसे कानूनी सलाह भी लेने पहुंचते हैं। मोबाइल से नंबर अंदाज पर सही लगाते हैं। सैकड़ों लोगों का मोबाइल नंबर उन्हें जुबान पर याद है। एन्ड्रॉयड मोबाइल चलाते आश्चर्य होता है।

क्या कहते हैं बीईओ- इस संबंध में पूछे जाने पर बीईओ सत्यानारायण साह ने बताया कि शिवशंकर उपाध्याय दिव्यांग होते हुए सामान्य शिक्षक से अधिक योग्यता रखते हैं। दिव्यांग भी किसी अंग से नहीं बल्कि दोनों आंखे से हैं। फिर भी वे सिझुआं विद्यालय में नैतिक शिक्षा के लिए एक मिसाल बने हैं। ऐसे शिक्षक से अन्य लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। सुविधा के दृष्टिकोण से वे जिस विद्यालय में जाना पसंद करेंगे वहां उनका स्थानांतरण किया जाएगा।


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