अपने पट्टीदार भाते नहीं, चुनाव में जातिवाद की बात कर रहे नेता
बिहार विधानसभा चुनाव में जिले के चारों विधानसभा में जाति का वोट का अपना अलग ही समीकरण है।
कैमूर। बिहार विधानसभा चुनाव में जिले के चारों विधानसभा में जाति का वोट का अपना अलग ही समीकरण है। जिले की चारों विधानसभा में या तो जातिवाद है या फिर पार्टी विशेष के चेहरे पर देखकर वोट दी जाती है। यहां विकास के नाम पर तथा अन्य रोजगार के मुद्दे पर नहीं बल्कि पार्टी विशेष तथा जातिवाद पर वोटिग ज्यादा है। वर्तमान चुनाव में कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनके अपने पट्टीदार से पटती तक नहीं है लेकिन चुनाव के दौरान वह जातिवाद शब्द का इस्तेमाल तथा अपने जाति के लोगों के बीच जाकर अपनी भूमिका बनाने में लगे हुए है। शहर के किसी भी चौक चौराहे तथा गांव के भी किसी चौक चौराहे पर जिले के चारों विधानसभा में जातिवाद को लेकर बात होते रह रही है तथा सब लोग अपने समीकरण के हिसाब से कई प्रत्याशियों की जीत हार का आंकड़ा जाति के हिसाब से बता रहे है। स्वजातिय को लेकर नेता अपने को बाहुल्य भी दिखा रहे हैं। जबकि जो नेता जातिवादी की बात कर रहा हैं उनके परिवार तथा पट्टीदार में ही जमीनी तथा कई मुद्दे को लेकर लड़ाई चल रही है। कुछ लोगों के मामले में तो प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। वैसे प्रत्याशी भी जातिवाद के बारे में बात कर रहे है। जिले के सभी 17 थानों तथा न्यायालय में अगर एक नजर में देखा जाए सबसे अधिक वादी तथा प्रतिवादी दोनों ही एक ही जाति के पाए मिलते हैं। सबसे ज्यादा विवाद जमीन स्थिति की है। इसके अलावा एक ही जाति के वादी प्रतिवादी का मामला सबसे अधिक है। फिर भी चुनाव में जातिवाद सर चढ़ कर बोल रहा है। हालांकि चुनाव के दौरान जातीय समीकरण का अपना ही एक अलग प्रभाव होता है। अगर कोई किसी जाति के नेता आते हैं तो वहां एक जाति के समुदाय की संख्या ज्यादा जुटती है।