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अष्टकोणीय है देश का सबसे प्राचीन मां मुंडेश्वरी का मंदिर

प्रखंड में स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर शक्ति और शिव को समर्पित है। कैमूर पर्वत श्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार माना जाता है कि उदय सेन नामक राजा के शासन काल में इसका निर्माण हुआ। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी में हुआ था। हालांकि इसके निर्माण को लेकर कई मत हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 10:37 PM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 10:37 PM (IST)
अष्टकोणीय है देश का सबसे प्राचीन मां मुंडेश्वरी का मंदिर
अष्टकोणीय है देश का सबसे प्राचीन मां मुंडेश्वरी का मंदिर

प्रखंड में स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर शक्ति और शिव को समर्पित है। कैमूर पर्वत श्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार माना जाता है कि उदय सेन नामक राजा के शासन काल में इसका निर्माण हुआ। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी में हुआ था। हालांकि इसके निर्माण को लेकर कई मत हैं।

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मंदिर में लगे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सूचनापट्ट से यह पता चलता है कि यह मंदिर 635 ई. से पूर्व अस्तित्व में था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर करीब डेढ़ हजार साल पुराना है। मंदिर परिसर में मौजूद शिलालेखों से इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। मंदिर अष्टकोणीय है। मंदिर का गर्भगृह निर्माण से अब तक कायम है। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। मंदिर को 2007 में बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद ने अधिगृहित कर लिया था। बताते हैं कि इस मंदिर का पता तब चला जब कुछ गड़ेरिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। यहां से प्राप्त शिलालेख में वर्णित तथ्यों के आधार पर कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाया कि यह आरंभ में वैष्णव मंदिर रहा होगा जो बाद में शैव मंदिर हो गया। फिर शाक्त विचारधारा के प्रभाव से शक्तिपीठ में बदल गया। मंदिर में स्थापित शिव लिग दुर्लभ है। दुर्गा का वैष्णवी रूप ही मां मुंडेश्वरी के रूप में यहां प्रतिष्ठित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा बाराही देवी की प्रतिमा है। क्योंकि इनका वाहन भैंसा है। कहते हैं कि दैत्यों चंड व मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थी, तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और वही पर माता ने उसका वध किया था। इसलिए वह मुंडेश्वरी माता के नाम से जानी जाती है। मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती। यहां बकरे को देवी के सामने लाया जाता है जिस पर पुरोहित मंत्र बोल चावल छिड़कता है जिससे वह बेहोश हो जाता है। फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है। पहुंचने का रास्ता : मुंडेश्वरी धाम तक पहुंचने के लिए पहाड़ी को काट कर सीढि़यों व रेलिग युक्त सड़क बनाई गई है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भभुआ रोड स्टेशन से उतर कर सवारी वाहन से भभुआ मुख्यालय पहुंचने के बाद भगवानपुर उसके बाद मुंडेश्वरी धाम जाने का रास्ता है। इसके अलावा भभुआ-चैनपुर पथ पर मोकरी गेट से दक्षिण होकर मुंडेश्वरी धाम मंदिर पहुंचने का रास्ता है।


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