सरेयां गांव के मवेशियों तक नहीं पहुंचते मच्छर, लगती है मच्छरदानी
मच्छरों से बचाव के लिए इंसानों को मच्छरदानी प्रयोग करते हुए तो आपने सुना होगा लेकिन मोह
मच्छरों से बचाव के लिए इंसानों को मच्छरदानी प्रयोग करते हुए तो आपने सुना होगा, लेकिन मोहनियां प्रखंड के अमेठ पंचायत के सरेयां गांव में मच्छरों से बचाव के लिए मवेशियों को भी मच्छरदानी लगाई जाती है। यह सुनने में भले ही अटपटा लगे लेकिन बिलकुल सही है। यह इंसानियत के साथ साथ मवेशियों के प्रति पशुपालकों के लगाव को दर्शाता है। जिसकी पूरे जिले में चर्चा होती है। यह अन्य पशुपालकों के लिए नजीर है। जिसका अन्य गांवों में भी अनुशरण होने लगा है। प्रखंड मुख्यालय से सरेयां गांव की दूरी करीब सात किलोमीटर है। इस गांव में सिर्फ यादव जाति के ही लोग रहते हैं। गांव की आबादी करीब आठ सौ है। हर घर में अच्छे अच्छे नस्ल की गाय और भैंस देखने को मिलेंगी। ग्रामीणों में गाय भैंस पालने का शौक है। यहां के मनोज सिंह यादव के पास 70 हजार की एक गाय है। जो देखने में खूबसूरत भी है और दूध भी अधिक देती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की व्यवस्था अन्य पशुपालकों के साथ सरकारी तंत्र को भी आइना दिखाने जैसा है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में घर के बाहर मवेशी बांधे जाते हैं। जहां मच्छरों की भरमार रहती है। मच्छरों के काटने से बेजुबान जानवर बेदम हो जाते हैं। इससे दुधारू पशुओं का दूध भी काफी कम हो जाता है। जिससे पशुपालकों को काफी नुकसान होता है। इसको ध्यान में रखकर सरेयां के किसानों ने मवेशियों को भी मच्छरदानी में रखने का तरीका निकाला। यह प्रयोग इतना सफल हुआ कि हर पशुपालक इसको अपना लिए। जिससे हर मवेशी स्वस्थ रहते हैं। दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। घर में पशुपालक मच्छरदानी में चैन की नींद सोते हैं तो बाहर में मवेशी मच्छरदानी में चैन से रात गुजारते हैं। ग्रामीण राम एकबाल सिंह यादव ने बताया कि करीब आठ वर्ष पूर्व उन्होंने मवेशियों को मच्छरदानी में बांधने का प्रयोग शुरू किया। जो काफी सफल रहा। इसका अन्य ग्रामीणों ने भी अनुशरण किया। आज पूरे गांव के मवेशी मच्छरदानी के भीतर ही बांधे जाते हैं।मच्छरों के काटने से बीमार पड़ते थे मवेशी, घट जाता था दूध-
ग्रामीण चिकित्सक डॉ रामेश्वर सिंह, अनिल यादव, अरुण यादव, अशोक यादव, मिथिलेश यादव, कमलेश यादव आदि ने बताया कि बरसात के दिनों में मच्छरों के कारण मवेशियों को काफी परेशानी होती थी। मच्छरों के काटने से मवेशी बीमार पड़ जाते थे। इससे किसानों को काफी नुकसान होता था। पशुओं का दूध घट कर आधा हो जाता था। जिससे आर्थिक क्षति होती थी। पशु चिकित्सकों ने इसे मच्छरों का प्रकोप बताया। तब ग्रामीणों ने सोचा की इंसान अपनी सुख-सुविधा के लिए सब कुछ कर रहा है वहीं ये बेजुबान मवेशी मच्छरों के काटने से बेहाल है। क्यों न इनके लिए भी मच्छरदानी की व्यवस्था की जाए। यहीं से इस व्यवस्था की शुरुआत हुई।स्वस्थ गाय भैंस दे रहे अधिक दूध-
ग्रामीणों ने बताया कि जब से मवेशियों को मच्छरदानी के भीतर बांधने की व्यवस्था की गई है तब से ये स्वस्थ रह रहे हैं। दुग्ध उत्पादन भी अच्छा हो रहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि पशुओं को अगर पीड़ा हो तो पशुपालक दरिद्र होता है। इस हिसाब से भी मवेशियों को आराम मिलने से पशुपालकों का भला होगा। इस व्यवस्था की हर कोई तारीफ करता है। बाहर से आने वाला हर व्यक्ति मच्छरदानी के भीतर बंधे मवेशियों को देखने के लिए खड़ा हो जाता है। धीरे धीरे प्रखंड के अन्य गांवों में भी लोग इस व्यवस्था का अनुशरण करने लगे हैं। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब हर पशुपालक अपने मवेशियों के सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए उन्हें मच्छरदानी के भीतर बांधना पसंद करेगा। इससे मवेशियों के मृत्यु दर में भी भारी कमी आएगी। साथ ही दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति सु²ढ़ होगी।क्या कहते हैं पशु चिकित्सक-
इस संबंध में जब मोहनिया के प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी डॉ धनंजय कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि बरसात के दिनों में कई घातक मच्छर पनपते हैं। जिनके काटने से मवेशी बीमार पड़ जाते हैं। कुछ ऐसे भी रोग हैं जिनका समय पर इलाज नहीं हुआ तो मवेशियों का बचना मुश्किल होता है। मवेशियों को मच्छरों से बचाने के लिए पशुपालकों द्वारा मच्छरदानी का प्रयोग सराहनीय है।इससे मवेशी स्वस्थ रहेंगे। दुधारू पशुओं के दूध में भी कमी नहीं आएगी।