को-ऑपरेटिव बैंक में पांच दिनों से ताला लटकने से किसानों में आक्रोश
रामगढ़ की सहकारी समितियों का हाल बहुत ही बुरा हो गया है।
रामगढ़ की सहकारी समितियों का हाल बहुत ही बुरा हो गया है। यहां को-ऑपरेटिव बैंक भगवान भरोसे है। किस दिन बैंक बंद रहेगा, किस दिन खुलेगा इसका कोई लेखा जोखा नहीं है। यहां तक की इसके कर्मियों को भी इस बात की जानकारी नहीं होती। बैंक की चाबी मैनेजर के पास रहती है। जब वे आमे तब ही बैंक खुलता है। बीत पांच दिनों से रामगढ़ को-आपरेटिव बैंक में ताला लटका हुआ है। जिस कारण किसानों का भुगतान बाधित है।
ऐसे भी यह सहकारी समितियां पैसे के अभाव में मुंह के बल आ गई हैं। तीन माह से अधिक समय बीत गया पर पैक्सों को सीएमआर का भुगतान नहीं हो सका। जिस कारण बहुतेरे किसानों को आज तक धान का भुगतान पैक्सों द्वारा नहीं हो सका है। सोमवार को कई किसान जब बैंक के पास पहुंचे तो ताला लटका रहा। मार्केट काम्पलेक्स के नीचली सीढ़ी पर ही ताला बंद होने से कर्मचारी व किसान सड़क के पास खड़ा रहे। बाद में पहुंचे रामगढ़ के सभी पैक्स अध्यक्षों को भी बाहर ही रहना पड़ा।
दरअसल, यहां के को-ऑपरेटिव बैंक से रामगढ़ व नुआंव दोनों प्रखंड की सहकारी समितियां संचालित होती हैं। ऐसे में कभी पैसे के कारण तो कभी अपने हिसाब से बैंक को बंद रखा जाता है। जिसको ले लोगों में गहरा आक्रोश देखा गया। किसानों की फसल को खेत खलिहान से उठाने के निमित इस सहकारी समिति का गठन किया गया, लेकिन पैसे के भुगतान में पेंच से यह सोसायटी कारगर नहीं हो पा रही है। पैक्स अध्यक्षों की माने तो हर कदम पर रोड़े ही रोड़े दिखते हैं। धान खरीद से लेकर सीएमआर तक पैक्सों को लंबे पापड़ बेलने पड़ते हैं। फिर भी उनको सरकार द्वारा समय से पैसा नहीं दिया जाता। लिहाजा वे किसानों को ससमय पैसा देने में विफल हो जाते हैं। पैक्स अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह, राजीव सिंह, अंगद सिंह, दयाशंकर सिंह, लोहा चौधरी व संजय सिंह, अंगद सिंह, सत्येंद्र सिंह, विजय बहादुर सिंह, गुप्तेश्वर सिंह, वीरेंद्र सिंह, अजय सिंह आदि ने बताया कि हमलोग सीएमआर का चावल एक माह पहले का एसएफसी को गिराएं हैं। फिर भी पैसा हमलोगों को अभी नहीं मिल सका। हमलोगों का कुछ पैसा खाते में होने के बाद भी किसानों को पैसा देने में को-ऑपरेटिव बैंक असमर्थता दिखा रहा है। किसान शंभु शरण, लालबहादुर ने बताया कि बैंक व एसएफसी के उदासीनता से अपना ही धान का पैसा अभी तक नहीं मिला। इस दुर्व्यवस्था को पैक्स अध्यक्षों ने सरकारी सिस्टम को खुब कोसा तथा कहा कि शासन प्रशासन की ढुलमुल नीति से किसानों को ससमय लाभ नहीं पहुंचाया जा रहा है। एक पैक्स का चावल एसएफसी में गिराने के लिए सात दिनों तक चावल लदे ट्रक को लाइन में लगना पड़ता है। जो डिटेंशन चार्ज पैक्सों को प्रतिदिन 15 सौ रुपये अतिरिक्त देना पड़ता है। बोरी का भी पैसा सरकार पर दो वर्ष का लाखों बकाया है। सरकार चार प्रतिशत पर सीसी पैक्सों को कराने की घोषणा की, लेकिन आठ प्रतिशत ब्याज हम सबों को देना पड़ता है। पैक्स अध्यक्षों ने बताया कि किसानों को चाहकर भी समय से पैसा सहकारी समितियां दे नहीं पाती है। जिससे हम पैक्स अध्यक्षों के साख पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जा रहा है।
रामगढ़ को-ऑपरेटिव बैंक के लगातार बंद रहने से उत्पन्न स्थिति की सूचना मिली है। बैंक मैनेजर से स्पष्टीकरण मांगा जा रहा है। कार्रवाई अवश्य होगी। जहां तक पैक्सों के खाते में सीएमआर का पैसा भेजने की बात है तो वह धीरे-धीरे भेजा जा रहा है।
- प्रभाकर कुमार, एमडी
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