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जल छाजन योजना से कैमूर का 650 हेक्टेयर एरिया हुआ सिचित

भूमि संरक्षण विभाग जिले के किसानों को सिचाई की सुविधा देने में पीछे नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 04:58 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 04:58 PM (IST)
जल छाजन योजना से कैमूर का 650 
हेक्टेयर एरिया हुआ सिचित
जल छाजन योजना से कैमूर का 650 हेक्टेयर एरिया हुआ सिचित

कैमूर। भूमि संरक्षण विभाग जिले के किसानों को सिचाई की सुविधा देने में पीछे नहीं है। भूमि संरक्षण विभाग के अंतर्गत संचालित जलछाजन घटक के माध्यम से कैमूर जिले के विभिन्न प्रखंडों के चयनित पंचायतों में जल संचयन की संरचनाएं बनाई गई हैं। जल संचयन संरचनाओं के माध्यम से एकत्रित पानी खेतों की सिचाई के लिए वरदान साबित हो रहा है। जल संरक्षण के माध्यम से कैमूर जिले की लगभग 650 हेक्टेयर एरिया को सिचित करने में सफलता मिली है।

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जानकारी के अनुसार पिछले वर्ष जिले के कई प्रखंड क्षेत्रों में पक्का चेकडैम, तालाब आदि का निर्माण कराया गया है। इससे असिचित भूमि को सिचित करने में जहां सफलता मिली है। वहीं सिचित भूमि की मिट्टी रिचार्ज होने के कारण जलस्तर भी ऊपर चढ़ गया है। जिससे भविष्य में कुछ समय तक जलस्तर खिसकने जैसी समस्याओं लोगों को जूझना नहीं पड़ेगा।

इस संबंध में भूमि संरक्षण विभाग के परियोजना निदेशक संतोष कुमार सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना के अंतर्गत कैमूर जिले में गत वर्ष कुल 260 योजनाओं को क्रियान्वित कराया गया है। जिससे लगभग 650 हेक्टेयर एरिया सिचित हुआ है। साथ ही जलस्तर भी सामान्य हुआ है। इसके अंतर्गत बांध पक्का चेकडैम तालाब आदि जल संचयन की संरचना का निर्माण कराया गया। जिसमें बरसात के पानी को संरक्षित करने का काम किया जाता है। यह परियोजना कैमूर जिले के रामपुर भगवानपुर अधौरा प्रखंडों के भीतरीबांध, बड़कागांव, खरैंदा, रामगढ़, सरैयां, सड़की, सारोदाग, डुमरांवा एवं चैनपुरा में की गई हैं। इन पंचायतों में राज्य परियोजना के अंतर्गत गत वर्ष 150 योजनाओं का भी निर्माण कराया गया है। इन योजनाओं के माध्यम से लगभग 400 हेक्टेयर एरिया भी सिचित हुआ है।

गौरतलब है कि कैमूर जिले में प्राकृतिक संपदा का अपार भंडार है। यहां दोनों अनुमंडल क्षेत्रों के अंतर्गत पहाड़ी व मैदानी क्षेत्र होने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्य फसलों का उत्पादन करना पानी के अभाव में काफी कठिन होता है। जल छाजन योजना के अंतर्गत जल संरक्षण की कवायद से पहाड़ी क्षेत्रों के किसान भी आसानी से असिचित भूमि को सिचित कर उत्पादन प्राप्त करने में सफलता पा रहे हैं।


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