कमरों के अभाव में 210 बच्चे दो कमरों में बैठकर पढ़ने को विवश
सदर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय हरला की स्थिति आज चार वर्षों से भयावह है। इस स्कूल की समस्या के समाधान में न प्रशासनिक पदाधिकारी आगे आ रहे हैं और न ही जनप्रतिनिधि रुचि ले रहे हैं।
सदर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय हरला की स्थिति आज चार वर्षों से भयावह है। इस स्कूल की समस्या के समाधान में न प्रशासनिक पदाधिकारी आगे आ रहे हैं और न ही जनप्रतिनिधि रुचि ले रहे हैं। इसके चलते इस स्कूल की समस्या और गंभीर होते जा रही है। शिक्षा के प्रति जागरूक अभिभावक अपने बच्चों को विवश होकर इसी स्कूल में भेज रहे हैं। लेकिन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का दावा करने वाला शिक्षा विभाग हरला गांव के स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को ठीक से बैठने की व्यवस्था व कमरा तक नहीं दे पा रहा। ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का दावा कितना सच है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस विद्यालय के बारे में जब जानकारी मिली तो ऐसा लगा कि यहां नामांकित बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। क्योंकि जिस समस्या के बीच यहां के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं वह काफी चिता का विषय है। यहां दो कमरों में 210 बच्चों को बैठा कर पढ़ाना शिक्षकों के लिए भी काफी मुसीबत भरा काम है। विवश होकर शिक्षक भी चार कक्षाओं के बच्चों को पास में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे बैठा कर पढ़ाते हैं। बरसात का मौसम शुरू हो गया है। जब बरसात होती है तो बच्चों को मंदिर में बैठा कर पढ़ाने की व्यवस्था शिक्षक करते हैं। शेष चार कक्षाओं के बच्चों को बैठने के लिए दो कमरों में व्यवस्था की गई है। जानकारी के अनुसार नामांकित 210 बच्चों में 111 छात्राएं हैं। वर्ष 2019 में 30 बच्चों का और नामांकन हुआ है। इससे यहां बच्चों की संख्या में इजाफा हो रहा है, लेकिन जो संसाधन पूर्व के हैं वह भी खराब होते जा रहे हैं। 2015 से लटका है एनओसी का मामला
इस संबंध में जब विद्यालय के प्रधानाध्यापक रविशंकर पाठक से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वे वर्ष 2015 के समाप्ति के समय पदस्थापित हुए। इसके बाद उन्होंने सीओ के यहां वर्ष 2016 में मापी के लिए आवेदन दिया। लेकिन कोई काम नहीं हुआ। इसके बाद फिर 2018 के फरवरी महीना में दोबारा आवेदन दिया गया। इसके बाद भी अब तक मापी नहीं हुई। इसके चलते अतिरिक्त कमरों का निर्माण नहीं हो पा रहा है। विद्यालय के पास में है कुआं
प्रधानाध्यापक ने बताया कि स्कूल के आगे 60 फीट जगह है। इसी स्थान में एक कुआं भी है। जो काफी गहरा है। हालांकि कुआं को ऊपर से ढंक दिया गया है। लेकिन बच्चों को खेलने के लिए जगह नहीं है। बरसात होने पर परिसर में पूरा जलजमाव हो जाता है। स्कूल की स्थिति नहीं सुधरने से गांव के लोगों में भी काफी नाराजगी है। ग्रामीणों ने बताया कि स्कूल तक आने-जाने के लिए रास्ता भी नहीं है। बरसात के समय में बच्चे स्कूल जाने के दौरान खेत में गिर जाते हैं।